श्रद्धांजलि : अमन चांदपुरी के दोहे
रुख़ से रुख़सत कर दिया, उसने आज नक़ाब।
लगा अब्र की क़ैद से, रिहा हुआ महताब।।
आँखें ज़ख़्मी हो चलीं, मंज़र लहूलुहान।
मज़हब की तकरार से, मुल्क हुआ शमशान।।
लब करते गुस्ताख़ियाँ, नज़रें करें गुनाह।
ज़हन-ओ-दिल बस में नहीं, कर मुआफ़ अल्लाह।
इश्क़ मुहब्बत में मियां, ज़ीस्त हुई बर्बाद।
ज़िंदा रहने के नये, सबब करो ईज़ाद।।
खिड़की से परदा हटा, जाग उठी उम्मीद।
कई रोज़ के बाद फिर, हुई चाँद की दीद।।
एक पुत्र ने माँ चुनी, एक पुत्र ने बाप।
माँ-बापू किसको चुने, मुझे बताएँ आप?
‘अमन’ तुम्हारी चिठ्ठियाँ, मैं रख सकूँ सँभाल।
इसीलिए संदूक से, गहने दिये निकाल।।