दुष्यंत की कविता : डॉ. पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

AANCH
दुष्यंत की कविता

हिन्दी ग़ज़ल के स्थापक दुष्यंत कुमार अपने समकालीन साहित्यकारों के बारे में भी कविताएं लिखा करते थे, आज वे रचनाएं महत्त्वपूर्ण साहित्यिक दस्तावेज हैं । जिनके माध्यम से रचनाकार विशेष की साहित्यिक प्रवृत्तियों तथा रचनाधर्मिता का परिचय प्राप्त होता है । प्रेषित ‘निराला’ कविता छायावादी चतुर्स्तम्भों में से एक पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की व्यक्तिगत और सामाजिक विशेषताओं पर आधारित है । यह कविता 1950 में लिखी गई थी तथा विजय बहादुर सिंह संपादित ‘दुष्यंंत कुमार रचनावली (भाग-एक)’ में संकलित है ।

निराला
निराला तुम निराले हो
क्रांति के प्याले हो
दृढ़ हो अविचल हो
अंबर का अंचल हो
अविरल सतत तुम
साधना में रत तुम
हिले नहीं फिरे नहीं
डरे नहीं गिरे नहीं
पंथ के खोबों से
दुबे और चौबों से
बढ़ते गए आठ प्रहर
चढ़ते गए गिरि गह्वर
पार किया ज़लज़लों को
प्यार किया मुश्किलों को
जले बिना आह के
चले बिना राह के
लक्ष्य पर पहुँच गए
पंथ कर नए-नए
जिधर चरण बढ़े उघर
नए नगर नई डगर
सदा बसे सदा बने
बिना तनिक कहे-सुने
बसा सके नई धरा
कि तोड़कर परंपरा
नए विचार रीति से
नए दुलार प्रीति से
कठोर हो दुलारकर
पुकारकर सुधारकर
बना लिया नया गगन
नई लगन नए नयन
नवीन दृष्टिकोण से
जहान देखते रहे
न दुःख तुझे रुला सका
न सुख तुम्हें सुला सका
कि हार-हारकर थके
तुम्हें न पर समझ सके
सदय करुण इंसान हो
खुद आप में भगवान हो
नववधू हिंदी की
माँग की लाली हो
आशा की ताली हो
सपनों के संबल हो
यौवन की हलचल हो
भाषा की नाज़ हो
हिन्दी के प्राण हो ।
……………………………….
संकलन कर्ता –
डॉ. पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’
सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
मो.- 8604112963

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *