पेड़ से हुई वार्तालाप!
आज सुबह
गंडक नदी के किनारे
नदी के तीरे-तीरे
यों मैं प्रात भ्रमण पर निकला था
इसी बीच मेरी मुलाकात
एक पेड़ से हो गई
चलते ही चलते
आंखों ही आंखों में
आंखें चार हो गई।
पेड़ बोला –
कुछ लिखते हो
कवि हो!
उकेरते हो जनसंवेदनाओं को
क्या मेरी दर्द को छू सकोगे?
क्या मेरी सूनी भावनाओं के साथ
जी सकोगे?
या तुम भी खेलोगे औरों की तरह
मेरी विवशता के साथ।
मैंने कहा –
कोशिश करूंगा कि
तुम्हें पढ़ सकूं
तुम्हारी दर्द को शब्दों में गढ़ सकूं।
फिर पेड़ बोला –
क्या तुम्हारी कलम
निरीह प्राणियों की आवाज बन सकती है?
हमारी हत्याओं पर कुछ लिख सकती है?
अगर तुम कवि हो
तो अपनी लेखनी को चरितार्थ करो तुम
हमारी हत्याएं न हो
लोगों में इसकी समझ विकसित करो तुम
बताओ उन सभी को
कि मेरे ही कारण
उनकी सांसे चलती है।
कोशिश करो कि कोई पौधा
मर न जाए
कोशिश करो कि कोई पेड़
कट न जाए।
तुम कवि हो
तो तुम्हारा धर्म भी है
कर्म भी है
कि तुम आवाज बनो
अपने अवाम की
सभी बेबस और लाचार प्राणियों की
क्योंकि लेखनी में बड़ी ताकत होती है
यदि वह सत्य व न्याय के साथ हो तो!
इसलिए हो सके तो लिखना
कि जंगल कटे नहीं
हो सके तो लिखना
कि रिश्ते बिके नहीं।
लिख सको तो लिखना
कि थाली में इतना जहर क्यों है?
लिख सको तो लिखना
कि मौत जीवन क्यों पी रही है?
कभी कोरोना तो कभी कुछ बनकर।
शिक्षक हो
इसलिए लिखना
कि आज शिक्षा क्यों सड़ रही है?
नौकरियों की जगह
बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है?
शिक्षक हो
इसलिए लिखना
कि नैतिक मूल्यों का पतन क्यों हो चुका है?
शिक्षक हो
इसलिए लिखना
शिक्षक क्या सब सो रहे हैं?
कि दुनिया में लूट-खसोट व भ्रष्टाचार
बढ़ रहे हैं
अपराध चरम पर है!
मैं अवाक था
उस पेड़ की बातों को सुनकर
मैं हैरान था
उस पेड़ की इल्ल्जाम को गुणकर।
मैं बड़ा गंभीर सोच में पड़ गया
कि क्या ये दुनिया कभी
मानवता युक्त होगी?
क्या ये धरती कभी
प्रदूषण मुक्त होगी?
देश का नया संसद भवन
हम सबका अपना नया संसद भवन
कितना खूबसूरत है
कितना प्यारा है
कितना न्यारा है!
यह हमारी उम्मीदों का नया घर है
जहां पर हम 140 करोड़ हिंदुस्तानी बैठकर
नये सपने संजोएंगे
जहां बसेगा
एक भारत और अखंड भारत
यह हमारी सभ्यता व संस्कृति का प्रतीक होगा।
हम सबका अपना नया संसद भवन
कितना खूबसूरत है
कितना प्यारा है
कितना न्यारा है!
यह घर इतना बड़ा है
जहां देश के हर प्रांत व प्रदेश
हर गांव व शहर के लोग होंगे
जहां हर धर्म व जाति का सम्मान होगा
ना कोई छोटा होगा
ना कोई बड़ा होगा
सब बराबर होंगे।
सब मिलजुलकर बैठेंगे
जहां चर्चाएं- परिचर्चाएं होंगी
जहां हर मुद्दे पर बहसें होंगी
और यहीं से निकलेगा
हर समस्याओं का हल
और विकसित भारत का नया तस्वीर।
हम सबका अपना नया संसद भवन
कितना खूबसूरत है
कितना प्यारा है
कितना न्यारा है।
संसद भवन के दीवारों पर लिखा होगा
‘सत्यमेव जयते’ का स्लोगन
जो एक नारा नहीं
सबका विश्वास होगा
अशोक चक्र का हाथी और शेर
लोगो नहीं,
हमारा इतिहास होगा
जो हमें सुनाएंगे
हमारे वीरों व महावीरों की कहानियां
और वीरांगनाओं की शौर्य गाथाएं।
हम सबका अपना नया संसद भवन
कितना खूबसूरत है
कितना प्यारा है
कितना न्यारा है!
नए संसद भवन में
देश का लोकतंत्र
और मजबूत होगा
जहां स्वतंत्रता, संप्रभुता
और प्रेम भाईचारे की गूंज होंगी
सबकी उम्मीदें होंगी
और सब का भविष्य होगा
जहां से भारत की बुलंदी का परचम
लहराएगा पूरी दुनिया में
अपने सदियों पुराने गौरव के साथ।
हम सबका नया संसद भवन
कितना खूबसूरत है
कितना प्यारा है
कितना न्यारा है!
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परिचय – डॉ.छोटेलाल गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग
जमुनी लाल महाविद्यालय, हाजीपुर, वैशाली