दिवाकर पांडेय चित्रगुप्त की पांच ग़ज़लें
1
कीट-पतंगें ही निकलेंगे इल्ली से,
हासिल क्या है धेला-टका-रूपल्ली से
ज्यों चूहों की रखवाली में बिल्ली से,
उतनी ही उम्मीदें रखना दिल्ली से
बीमारी में लेटा हूं तब देखा है,
अपना ही घर पहली बार तसल्ली से
वक्त पड़ेगा तब सारे काम आयेंगे,
गम के बोरे रखवा लेना छल्ली से
स्टेडियमों का सारा सुख उनका है,
जनता खुश है स्टैंपों की गिल्ली से
दिन का भूला रातों में घर आए तो,
स्वागत करना दरवाजे की किल्ली से
पेड़ों का दुःख ऊपर देखो दिखता है,
ऑक्सीजन के तीन अणुओं की झिल्ली से
हंसने वाले हंसते हैं तो हंसने दो,
ताकत मिलती है दुनिया की खिल्ली से
2
अब कोई उम्मीद इससे पालना बेकार है,
तंत्र को हैजा निमोनिया और कालाजार है
ठीक होने का इरादा छोड़ दें बीमार सब,
वायरस ही डॉक्टर का खास ओहदेदार है
छू नहीं सकता उसे दुःख का समुंदर इंच भर,
जो मिले जैसा मिले सब कुछ जिसे स्वीकार है
सोचकर भरना हृदय में भावनाओं के कपास,
आपका घर फूंकने को हर कोई तैयार है
फूल, खुशबू, झील, दरिया, और मदमाती हवा,
आ भी जाओ अब तो केवल आपकी दरकार है
बीच में मजबूरियों का है खड़ा उन्नत पहाड़
हम उसी के इस तरफ हैं और वो उसपार है
ये विसंगतियां पड़ोसी देश से आईं नहीं
है प्रजा जैसी तुम्हारी उस तरह सरकार है
3
दरिया जितना छिछला होगा,
उतनी गति से निकला होगा
गहरे नद सा बहने वाला,
पर्वत जैसा पिघला होगा
भाएगा आगे भी कोई ,
पहला लेकिन पहला होगा
बाजीगर मानेंगे उस दिन
जब नहले पर दहला होगा
चाहे जिसकी खिदमत होगी,
उसका चेहरा क़िबला होगा
4
सच का अपना वर्जन लेकर आएंगे,
ये कोई परिवर्तन लेकर आएंगे
गदहों पर गदहे का होगा संभाषण,
ऐसा कोई दर्शन लेकर आएंगे
काग़ज़ के कुछ चित्रों और मुखौटों से,
शेरों वाला गर्जन लेकर आएंगे
ये भी जब आयेंगे लाइम लाइट में,
केवल नंगा नर्तन लेकर आएंगे।
खुशियां मांगोगे जब बाहर दुनिया से,
सारे छूंछे बर्तन लेकर आएंगे
जिस दिन दुर्जन हो जायेंगे संपादक,
जाने कैसा सर्जन लेकर आएंगे
पायजामा खीचेंगे ऊपर जाते ही,
पहले लोग समर्थन लेकर आएंगे
5
इश्क़ का जोड़-गुणा-भाग सिखाया जाए,
हमको नफ़रत का पहाड़ा न पढ़ाया जाए।
दिल की दुनिया में लघुत्तम न महत्तम हो कोई,
अंश-हर कुछ हो बराबर ही बिठाया जाए।
मूलधन-ब्याज-कराधान सीख जाएं तो,
पहले रिश्तों का जमा कर्ज चुकाया जाए।
क्षेत्रफल ज्ञात हो जिस शख़्स के दिल का पहले,
राज की बात उसी को ही बताया जाए।
वो जो परिमाण मिटा दे किसी की हस्ती का,
कोई तोहमत न किसी भी पे लगाया जाए।
शेष बचती हो जहां सिर्फ यही प्रायिकता,
तो ही अनजान के इनबॉक्स में जाया जाए।
देखने जाएं जो ज्यामिति किसी के चेहरे का,
टैन थीटा की तरह मुंह न बनाया जाए।
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परिचय : दिवाकर पांडेय चित्रगुप्त की ग़ज़लें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है
संपर्क – ग्राम जलालपुर, पोस्ट कुरसहा, जिला – बहराइच
उत्तर प्रदेश 271821
मोबाइल – 7526055373