ख़ास कलम – जयप्रकाश मिश्र

दोहे :: महानगरीय समस्याएँ

  • जयप्रकाश मिश्र

 

नंगेपन की दौड़ में, महानगर है आज।

बिना शर्म की नग्नता,  फिर भी करती नाज।।1।।

 

भीड़-भाड़ की जिन्दगी, मिलता  ट्रैफिक जाम।

घुटन भरे इस दौर में, मिले नहीं विश्राम।।2।।

 

खड़ा प्रदूषण हँस रहा, साँसें हुईं गुलाम।

सुबह उदासी से भरी, डरा रही है शाम।।3।।

 

मेहनत बिकती है यहाँ, टके सेर के भाव।

बिना उष्णता ज़िन्दगी, इतना हुआ गिराव।।4।।

 

बद से बदतर हो रहा, महानगर का हाल।

घर-घर पसरा खौफ है, बिछा हुआ है जाल।।5।।

 

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