विशिष्ट कहानीकार :: आलोक कुमार मिश्रा
मुँहनोचनी आलोक कुमार मिश्रा जाने कहाँ से आई थी वो। पूरे दिनों का पेट लिए हुए थी। तन पर नाम मात्र के फटे-पुराने चिथड़े थे। ऐसा लगता था जैसे उसे…
मुँहनोचनी आलोक कुमार मिश्रा जाने कहाँ से आई थी वो। पूरे दिनों का पेट लिए हुए थी। तन पर नाम मात्र के फटे-पुराने चिथड़े थे। ऐसा लगता था जैसे उसे…
सच को आईना दिखा रहा ‘आईने से पूछो’ सुदेश कुमार मेहर ग़ज़ल का सौंदर्य उसके शिल्प में निहित है। ग़ज़ल की विशेषता ही यह है कि उसका सौन्दर्य उसके शिल्प…
डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’ की छह ग़ज़लें 1 लाया हूँ मैं अभिसार में भीगी हुई ग़ज़लें , दिल के किसी तहख़ाने से निकली हुई ग़ज़लें । आती हैं ये…
हिंदी ग़ज़ल में नदी, पोखर, झील, दरिया और समुन्दर डॉ. भावना जल ही जीवन है। जल के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रकृति ने हमें झील,…
सोनरुपा विशाल की ग़ज़लों में अंदर की बेचैनी …
सुबीर कुमार भट्टाचारजी की तीन कविताएं आनंदमयी माँ द्वारा चोर का हृदय परिवर्तन आनंदमयी माँ जा रही थीं ट्रेन से एक हाथ बाहर था खिड़की के उन्होंने उस हाथ में…
शिक्षा के बाद भी गरीब हाशिये पर आचार्य शीलक राम संसार में पहले भी और अब भी अनेक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, पंथिक, मजहबी, सुधारवादी, वैज्ञानिक, भक्तिवादी,योगाभ्यास से संबंधित विचारधाराएं, सिद्धांत,वाद,पंथ,मत,…
सुरेश सौरभ की दो लघुकथाएं सूचकांक तीन सौ, ….नहीं चार सौ….. पांच सौ….. वो हजार वाली सामने….छीः छीः कितने गंदे लोग हैं, कोई…
अब मैं बोलूँगी : एक खरी और ज़रूरी किताब शैली बक्षी खड़कोतकर स्मृति आदित्य, मीडिया और साहित्य का सुपरिचित नाम, जब कहती हैं ‘अब मैं बोलूँगी’ तो सुनने वालों को सजग, सतर्क होकर सुनना होगा।…
मैकाउ – सुशांत सुप्रिय प्रिय शेखर , जब भी तुम बहुत याद आते हो , मैं तुम्हें पत्र लिखने बैठ जाती हूँ । लेकिन पत्र वह सब पूरा नहीं कर सकते जिसके लिए तुम्हारे साथ की ज़रूरत होती है । मैकाउ के रंगों वाले तुम्हारे दस्ताने मिल गए हैं , जिन्हें तुम पिछली बार मेरे यहाँ छोड़ आए थे । इस हफ़्ते एक अतिथि…