विशिष्ट कवयित्री : मालिनी गौतम
मत करना प्रेम तुम मुझे मत करना प्रेम सबके सामने कि लोग जान जाएँगे राज़ एक ठूँठ वृक्ष के हरे होने का तुम करना प्रेम अपने आँगन में बैठी गोरैया…
मत करना प्रेम तुम मुझे मत करना प्रेम सबके सामने कि लोग जान जाएँगे राज़ एक ठूँठ वृक्ष के हरे होने का तुम करना प्रेम अपने आँगन में बैठी गोरैया…
हम_तुम को समर्पित तुम भाग्य बदलने आयी हो न जाने तुम कौन देश से पावन प्रकाश संग लायी हो महक उठा है जीवन मेरा सद्मित्रता की सौगात लायी हो। महक…
पतझर-सा यह जीवन जो था शांत, दुखद, बेहाल उसमें तुम फागुन-सा आकर प्रिय मल गए गुलाल गम को निर्वासित कर तुमने मेरा मोल बताया जो भी था अव्यक्त उसे अभिव्यक्त…
स्पर्श के संस्मरण ये सब तुम्हारे थिर था प्रतिबिम्ब छुआ दी तुमने तर्जनी की पोर देर तक काँपता रहा तालाब ऊष्मा रख दी गले पर अटकी रह गई साँसें कुतर…
रात चाँदनी चुपके आई खिड़की से सिरहाने में! सुबह सुबह तक रही सुबकती लीन रही दुलराने में! पता नहीं क्यों लापता रही कितने दिन बेगानों-सी इधर रही पर मेरी हालत…
सोपान तोड़कर अपार अनंत से, अनाम सा फूल कोई बेनाम सा फूल कोई बदनाम सा फूल कोई कि मादक है खुशबू उसकी बेहोश करती है बुलाती है चर, अचर, निशाचरों…
प्रेम रोग तेज धड़कनों का सच समय के साथ शायद बदल जाता है ना कभी नजरों के मिलने भर से ही या स्पर्श भर से स्वमेव तेज रुधिर की धार…
तुम ख्वाब की तरह जलती हो मैं लैम्प पोस्ट की तरह रोशन राह दिखाता हूँ न जाने कितनी सदियों का नफरत मुझे लहूलुहान किया इसी मोड़ पर इसी मोड़ पर…
गुम हो गई कविता के मिलने की खुशी बीते बरसों को पलटकर देखना मुश्किल होता होगा , लेकिन तुम्हें बताऊँ ? बावरे मन ने तो इस सफर को महज चालीस…
आजा तेरे हुस्न का सदक़ा मैं उतार दूँ फूल सारे बाग़ के आज तुझपे वार दूँ तेरी सारी उलझनें हँस के मैं संवार दूँ तेरे सारे रंजो ग़म खुशियों से…