विशिष्ट गीतकार : जय कृष्ण राय तुषार

एक गीत-ये हमारे प्रान बहुत मुश्किल से हवा में लहलहाते धान ये नहीं हैं धान , प्यारे ये हमारे प्रान ! जोंक पांवों में लिपटकर रही पीती खून, खुरपियों से…

विशिष्ट कवयित्री : अनीता सिंह

अपनों के लिए ईश्वर को साथ लिए चलती है स्त्री सामा चकेवा के बहाने पहुँच जाती है नइहर भावजों से तिरस्कृत होकर भी नही चाहती अनबन रोक देती है भाई…

विशिष्ट ग़ज़लकार : हातिम जावेद

हातिम जावेद की ग़ज़लें 1 इक नज़र आपकी हो गई ज़िंदगी ज़िंदगी हो गई आपने लफ़्ज़े-कुन कह दिया सारी कारागरी हो गई आप की दी हुई ज़िंदगी लीजिए आपकी हो…

पुस्तक समीक्षा : अनिरुद्ध सिन्हा

डी.एम.मिश्र की ग़ज़लें लोक-जीवन का काव्यात्मक अंकन हैं डी.एम.मिश्र की ग़ज़लें अपने स्वगत चिंतन और आत्मानुभूति के लोक में स्वछंद विहार करती हुई नज़र आती हैं। इसका प्रमुख कारण है…

आलेख : डॉ मनमीत कौर

आदिवासी स्त्रियाँ (निर्मला पुतुल की कविताओं के विशेष संदर्भ में)                                                                      – डॉ मनमीत कौर वर्तमान भारत में आदिवासियों की कुल आबादी लगभग आठ प्रतिशत है। इसमें आदिवासी स्त्रियों इसका…

खास कलम : विकास

1 सफर में रहनुमाई चाहता हूँ कहाँ तुमसे जुदाई चाहता हूँ मैं ज़िम्मेदार  हूँ  अपने किये का न  उसकी मैं बधाई चाहता हूँ ये कैसी ज़िद  मेरे  हिस्से में आई…

दोहे : जयप्रकाश मिश्र

सोने जैसी बेटियाँ, भिखमंगें हैं लोग। आया कभी न भूल कर, मधुर-मांगलिक योग।। 11 लिपट तितलियाँ पुष्प से , करती हैं मनुहार। रंगों का दरिया बहे, बरसे अमृतधार।।12 चेहरे से…

विशिष्ट कहानीकार : अंजू शर्मा

उम्मीदों का उदास पतझड़ साल का आखिरी महीना है ऑटो से उतरकर उसने अपने दायीं ओर देखा तो वह पहले से बस स्टॉप पर बैठी उसका इंतज़ार कर रही थी!…

आलेख : संजीव जैन

वस्तुकरण का उन्माद आधुनिक पूँजीवादी व्यवस्था ने पूरी दुनिया को ‘वस्तुकरण के उन्माद’ की धुंध और कुहासे के अनंत चक्रव्यूह में फंसा दिया है। ऐसा उसने व्यक्ति चेतना को ‘वस्तुकरण’…