विशिष्ट कवयित्री : स्वाति शशि

मैं तुमसे मिलना चाहती हूं

मैं तुमसे मिलना चाहती हूं

सिर्फ़ एक बार

मैं जानना चाहती हूं जवाब

अपने बहुत सारे सवालों का

मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ

 

बीते हुए सालों में

और वक़्त की रफ़्तार में

तुम कितने बदल गए हो

मैं यह देखना चाहती हूं

मैं तुमसे मिलना चाहती हूं

 

ज़िंदगी की धूप और तपिश ने

तुम्हें कितना कठोर बना दिया है

तुम्हें छूकर देखना चाहती हू्ं

तुमसे मिलना चाहती हूं

 

तुम्हारी इस नई दुनिया में

मेरी स्मृतियों के लिए कोई जगह है
भी

जानना चाहती हूं

तुमसे मिलना चाहती हूं

 

इतने दिनो के गिले शिकवे के साथ

एक बार फिर तुम्हारे कंधो पर
सिर रखकर

रोना चाहती हूं

तुमसे मिलना चाहती हूं

 

आज भी जब उन टेढ़़ी-मेढ़़ी गलियों से गुज़रती हूं

याद आती है एक दुकान

जहां हमने खायी थी चाट न जाने कितनी बार

और उसके पीछे एक मकान

सुरक्षित है मेरी आंखों में

हर वह सुखद पल

जो इन गलियों मे बिताए थे

 

पर, आज ये रास्ते कितने बदल गए हैं

भटक जाती हूं हर वक़्त

जब भी इन गलियों में

ढूढ़ती हूं सुनहरे पलों की निशानी

दूर तक बढ़ती जाती हूं

पर, नहीं मिलते

चाट की दुकान, मकान और लेंप पोस्ट

 

आज भी जब तन्हा होती हूं

तो ख़ुद को गंगा किनारे खड़ा पाती हूं

और देखती रहती हूं

उन लहरों को देर तक

छूने की कोशिश करती हूं

कहीं ये भी बदल तो नहीं गए

जिस तरह गलियां बदली, लोग बदले

………………………………………………

परिचय : स्वाति शशि संयुक्त राज्य अमेरिका के मिशीगन में रहती हैं

 

 

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