विशिष्ट कवयित्री : आरती तिवारी

प्रेम
1

तुमने कहा
चाहता हूँ बेइन्तहा तुम्हे
तुम्हारी खातिर सो नहीं पाता
रातों को
तुम्हारे सिर्फ तुम्हारे लिए
जागता और बदलता हूँ
करवटें सारी रात
सुबह से शाम तक
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हे ही सोचता जीता और
आँखों ही आँखों में पीता रहता हूँ।
बस मिल जाओ चुपके से
हम मनाएं प्रीत का उत्सव
सिर्फ तुम और मैं
हम मिले तो कई बार पर
तुम दूर ही रहीं/ जाने क्यों
आज प्रॉमिस डे है /आओ करीब
मैंने कहा/आती हूँ/सदा के लिए
सिर्फ तुम और मैं बस
वो हट गया घबरा के
नहीं ऐसे ही ठीक है
मेरा घर/परिवार/समाज
लोग क्या कहेंगे।
………और
दम तोड़ गया
उसका प्रेम/उमगने से पहले

2
वो मेरी चाहत थी
नूरे-नज़र मेरे ख्वाबों की मलिका
मेरी सिर्फ मेरी होके भी
कितना दूर थी मुझसे
किसी की शरीके-हयात
नसीब ने बना दिया था उसे
पर हमारे प्रेम के बीच
कभी आने नहीं दिया उसने
कोई पति कोई बच्चा/कोई अड़चन
उफ़्फ़ कितना शिद्दत से चाहती थी ज़ालिम
मैं भी दीवाना था/ सुबहो_शाम
ख्याल उसका नींद उसकी चैन उसका
सब उसी का तो था।
मेरा क्या था?
उसकी एक एक मुस्कराहट की कीमत
हीरों का एक हार थी।
उसके एक एक ख्वाब पे क़ुर्बान कर दिया
सारा जहाँ
अरे हाँ /सारा कारोबार
प्रेम जो करता था बेशुमार
और आज था प्रॉमिस डे
नहीं ला पाया कोई उपहार
उसका जो था सब उसे ही दे चुकने के बाद
आज आया था / खाली हाथ
टूट गया था वादा/
…………और
प्रेम भी टूट गया था
मेरे देखते-देखते

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