विशिष्ट कवयित्री : मालिनी गौतम

मत करना प्रेम

तुम मुझे मत करना प्रेम
सबके सामने
कि लोग जान जाएँगे राज़
एक ठूँठ वृक्ष के हरे होने का
तुम करना प्रेम
अपने आँगन में बैठी गोरैया को
मैं तुम्हारी हथेली पर
धान का चुग्गा बन
महक जाऊँगी
तुम करना प्रेम
सूरज में तपती
जामुनी नदी को
मैं मछली बन
लहरों पर फिसल जाऊँगी
तुम करना प्रेम
खेत में खड़ी फ़सलों को
मैं मक्की के दूधिया दाने-सी
तुम्हारे स्वाद में घुल जाऊँगी
पर यह सब करते हुए भी
अगर बन्द नहीं रखीं
तुमने अपनी आँखे
मैं तुम्हारी पलकों के किनारों पर
ढुलक जाऊँगी
और लोग जान जाएँगे राज़
एक ठूँठ वृक्ष के हरे होने का।

पच्चीस बरस बाद

ठीक पच्चीस बरस बाद
फिर से संपर्क में आई लड़की से
लड़के ने एक दिन मैसेज में कहा ,
मैं आऊँगा कभी तुमसे मिलने,
तुम्हारे घर ….अपने परिवार के साथ
लड़की चुप रही
फिर मुस्करा कर बोली
लेकिन उससे पहले
मैं तुमसे अकेले मिलना चाहती हूँ
उसी शहर में
जहाँ हम आख़िरी बार मिले थे
क्षिप्रा के घाट पर,
नदी की धार पर एक अधूरी-सी धुन
अब भी हिचकोले खाती होगी
उसे जरा गुनगुना लूँ….
हरसिद्धि के दीपस्तंभ पर
जले हुए सपनो की कालिख
अब भी जमा होगी
उसे आँखों में आँजना बाकी है
भर्तहरि की गुफाओं में
ध्यानमग्न बैठे उस योगी की
खुलती आँखों में
जीवन को देखना बाकी है
और कालभैरव के अनबूझे तिलिस्म में
सच्चाई को बूझना अभी बाकी है….
लड़का अवाक् था …धीरे से बोला
तुम बिल्कुल नहीं बदलीं
वक्त की तेज़ बारिश में
कैसे बचा पाती हो खुद को
छीज-छीजकर खाद होने से
लड़की मन ही मन बुदबुदाई
तुम नहीं समझोगे
इस खाद में ही इंतज़ार
हर रोज़ खिलता रहा है उत्सव बनकर
मधुमालती का फूल बनकर ……

प्रेम प्रतीक्षा और नमक

नदी की पतली धार-सी
क्षीण होती लड़की
अपलक ताकती है
अपने शब्दों का किनारों पर
रेत की तरह
भरभरा कर ढहना..
भाषा का अर्थ को विसर्जित कर
गहरे-गहरे डूब जाना,
छाती में दबाये हुए
प्रतीक्षा के नन्हें बीजों का
अनायास ही वीरान, विशाल टापू में
परिवर्तित होना,
दो साँसों का लहरों पर साथ चलते-चलते
लय से विलम्बित होना
और धप्प से
मौन के महीन जाल का
मन पर आच्छादित होना…
बावरी लड़की इन दिनों
उगाती है नमक के फूल
प्रतीक्षा के निर्जीव टापू पर,
विस्मृति की बूठी कैंची से
काटती है मौन के बारीक रेशे,
और सहेजती है
भाषा के भग्न अवशेष
ताकि एक दिन समुद्र से मिलने पर
सुना सके उसे
अपने प्रेम, प्रतीक्षा और मीठे से खारी होने की कथा।

एक लड़की नीलकंठी

बिछड़ने के आखिरी दिनों में
लड़की खामोश बैठी थी
क्षिप्रा के घाट पर
पानी में डूबे अपने पैरों को देखते हुए,
लड़का जानता था
कि शब्दों की एक नदी
करवट बदल रही है उसके गले में
जो किसी भी वक्त
बाहर निकलेगी
आंखों के रास्ते,
डूबने से भयभीत लड़के ने
लड़की को छेड़ते हुए कहा
सब क्लासमेट्स कितने ही दिनों से ले रहे हैं
एक दूसरे के ऑटोग्राफ़
तुम कब शुरू करोगी लेना..?
चपटे चेहरे वाली आयशा जुल्का
आर्चीज़ के कलेक्शन में
तुम्हारी मनपसन्द डायरी मिली या नहीं?
लड़की ने झुँझलाते हुए
एक नाजुक सी केसरिया डायरी
अपनी स्कर्ट की जेब से निकाल कर रख दी
लड़के के हाथ में
जो उसने पूरी दोपहर आर्चीज़ कार्ड गैलरी की
ख़ाक छानकर खरीदी थी,
लड़की ने बड़ी बड़ी आँखे तरेर कर कहा
“हिदी में लिखना”
और एक झटके से उठ खड़ी हुई….
लड़का रातभर डूबता-उतराता रहा
नदी के केसरिया प्रवाह में
दूसरे दिन चुपचाप
डायरी थमा दी लड़की के हाथों में,
लड़के ने पहले पन्ने पर
अंग्रेजी में लिखा था
आई ऑब्जर्वड योर पर्सनैलिटी फ्रॉम माय फर्स्ट मीटिंग एंड टिल नाउ एज़
– ए डॉल टू लव
-लीडरशिप एज़ स्ट्रीम
-डेयरनेस एज़ स्टोन
-ए वेरी गुड एडवाइजर
-ए टू काइंड हार्टेड एज़ नीलकंठ……
खामोश लड़की ने कस कर मुठ्ठी में दबा लिया उस केसरिया पन्ने को
और तय करती रही यात्रा बरसों की…
गुड़िया सी वह लड़की
बड़ी बड़ी बातें करती रही
बड़े बड़े फैसले लेती रही
बड़ी बड़ी सलाहें देती रही
और महसूसती रही निःशब्द
गले में करवट लेती नदी के केसरिया रंग को
पहले जामुनी और फिर नीले में तब्दील होते हुए
लड़की नीलकंठ है अब …..

 

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