हमारे समय का सांड़
चारा की तलाश में
गायब हुआ सांड लौट आया है
सब अचरज में हैं उसे देखकर
मौन है, शांत चित्त होकर देख रहा है
बच्चे चिंता में हैं
पहले की तरह खदेड़ नहीं रहा है
पूँछ हिला रहा है लगातार
औरतें दूर से ही भागना चाहती हैं
बुढ़ापे समझाए जा रहे हैं
सांड से बचने की तरतीबें लोगों को
खेत-कियारी सुरक्षित रखने की चिंता
परिवेश में अधिक बढ़ गयी है इन दिनों
सांड भी कुछ कहना चाहता है
यह कि वह मारता नहीं
यह कि वह दौड़ता नहीं
यह भी कि खेती कियारी पर नहीं डालता बुरी नजर
लोग रखवाली में हैं
घर-परिवार और जर-जमीन के
पता है उन्हें यह सांड की ईमानदारी नहीं
मजबूरी भले हो सकती है न चल पाने की
सांड भी जानता है
नहीं बदल सकता वह स्वयं को
चिल्लाना इसीलिए छोड़ा है कि लोग
नम्रता के भेष में उसके शिकार हों|
2
पहले अकेले ही चल देता था
पूंछ उठाए
पघुराते हुए सांड
जिधर से गुजरता था
भाग खड़े होते थे सब के सब
भागने वाले निडर होने लगे, तो
सांड ने बदल लिया अपनी आदत
अब सांड अकेला नहीं है
साथ चलता है लाव-लश्कर को लेकर
चौकन्ना रहता है
हाथ पैर मारता रहता है आगे पीछे
सुना है पिछले दिनों
अभ्यास कर रहा था हथियार चलाने की
उसके ही पड़ोसियों ने हिदायत दी थी
सीखे रहोगे तो बचे रहोगे
हथियार कहाँ से पायेगा यह चिंता उसे थी
परिवेश में हलचल है कि हथियारों से लैस है वह
पड़ोसियों ने चंदे जुटा कर मुहैया कराया है
अब सांड घर-परिवार से लेकर देश-दुनिया के लिए एक सिरदर्द है
3.
इधर सांड को समाज में बड़ा परिवर्तन दिखा है
लोग बदलाव की चाहत में कैसे जड़ हो रहे हैं
वह देख रहा है जहाँ से सभ्य होते हैं लोग
वहां वेद नहीं जंतर मंतर लिखा है
अब मनुष्य वह मनुष्य नहीं रहा
जो डरता था अक्सर जानवर को देखकर
वह मान चुका है कि जानवर उसके पूर्वज थे
बूढ़ों की नवयुवक सुनते ही कब हैं आखिर
सांड शंसय में है
मनुष्य को जानवर समझे, तो
जानवर मनुष्य हैं आज के समय के
रोने-मुस्कुराने की कोशिश वह भी करने लगा है
सांड पहले नहीं डरता था अपनी विरादरी से
अब मनुष्य से भी डरने लगा है
सांड अब सांड नहीं रहना चाहता इसलिए
अपने अन्दर विचारधारा का विकास करने लगा है
पिछले दिनों ऐलान कर दिया था सांड ने
किसी भी मान्यताओं को नहीं मानेगा वह
उल्ट-पलट डालेगा अर्थ प्रतीकों का
हगने खाने की नीति में भी लाएगा परिवर्तन
सब उसे शंसय की दृष्टि से देख रहे हैं
गरिया रहे हैं उसके आस-पड़ोस के लोग
सांड हंस रहा है, उसे पता है जो गरिया रहे हैं
वो भी सांड बनने की प्रक्रिया में आ रहे हैं
4.
ऑफिस में बैठा सांड
रह-रह कर मुस्कुरा रहा है
कम्प्यूटर पर हाथ फेरते
बार-बार नाक सुरुक रहा है. जुकाम हुई है
आभास ऐसा मिलने वालों को हुआ है
दलाली में कुछ नजर नहीं आया इस शहर
सांड पिछले महीने गया था
किसी घाटी के आस-पास की बस्ती में
आयोजन कोई विचार-विमर्श का था
वह साधना चाहता था व्यापार-लाभ
सामान के रूप में कुछ ख़ास नहीं था
वह कह सकता कि इसमें दम है
जो था पूछता भी नहीं था कोई उसे
हालांकि वह कहता रहा
क्रांति के सारे रास्ते यहीं से होकर निकलते हैं
कैसे कहता अपनी विरादरी में
इस बार नहीं मिली कोई ख़ास अहमियत उसे
अपने जैसे घूमते कुछ सांड़ों को इकठ्ठा किया
फोटो खिचाया फेसबुक पर छोड़ दिया
अब सभी सांड मिल कर क्रांति का नया पैमाना तय करेंगे
इधर समाज में आई चेतना से सभी सांड भयभीत हैं
सूचना मिली है खेतों में धोख नहीं मनुष्य खड़े हैं
दाग तो रहे ही हैं विधिवत मार-पीट कर भगा भी रहे हैं
इसलिए सांड़ों ने निकलना कर दिया है बंद
नारेबाजी के आयोजन अब फेसबुक से निभा रहे हैं
यह न समझ ले कोई
शहर से सांड गायब हो गया है, इसलिए
बार-बार आकर शपथ ले रहा है, यह कि
विरादरी के बाहर के लोगों को नहीं देगा प्राथमिकता
शपथ लेता है कि कूड़ा ही बनाएगा और वही बेचेगा
पुनरावृत्ति नहीं होगी, जो भी हो पहले से घटिया होगी||
5.
जब मैं नहीं बोलना चाहता
कुछ भी इधर कई दिनों से
सुनना चाहते हो तुम
वह सब कुछ जो है इस दुनिया में
और नहीं भी है अभी तक जो
जिसे लाना है हमें-तुम्हें, वह भी
ऐसा भी नहीं है कि
बोलना नहीं आता मुझे कुछ भी
लेकिन ज़रा ध्यान से सुनों
नहीं बोलना चाहता हूँ मैं
सच कह रहा हूँ
बोलने में आवाज होती है
आवाज में कोलाहल से भर उठता है
अपना परिवेश
कुछ पागल होकर नाचने लगते हैं
सब हंस-बोल क्यों रहे हैं एक दुसरे से?
सब नहीं होते
जिन्हें कोलाहल पसंद हो
चिड़ियों का कलरव
भौरों की गुंजार
कोयल की बोल
मनुष्य के परिहास
सब कहाँ पचा पाते
विरोध कर जाते हैं
यह भी नहीं है कि वे
बोलते नहीं कुछ भी कभी
दरअसल वह सब बन जाना चाहते हैं
फूल-कांटे, कौवा-कोयल,
तितली-भौंरा, खेत-फसल
आदमी-जानवर सब के रूप में दिखना चाहते हैं
भले कुछ न कर सकें वे
अपने पास रखना चाहते हैं
सबके अधिकार
सबका कर्तव्य स्वयं पूरा करना चाहते हैं
सब उन्हें सबकुछ समझें
सब का बनकर रहना चाहते हैं
सब जानते हैं
वे आदमी नहीं हैं
जानवर भी नहीं हैं
पंछी, पौधा, हवा, पानी, अग्नि
कुछ भी नहीं हैं वे
इन सबकी शक्ल में
वे हमारे समय के सांड हैं
पाला-पोषा जाता रहा है जिन्हें
सदियों से, इसलिए नहीं कि
उनका होना जरूरी है हमारे बीच
इसलिए कि लोग परेशान रहें
समाज की हर संस्थाओं में
विराजमान हो गये हैं सांड
कुछ आँख दिखाते हैं तो कुछ
मीठी बोली-वाणी से छलते हैं
वह तुम्हें कुछ भी कह दें, बोल दें, कर दें
तुम्हें अधिकार नहीं है कि कुछ सोच भी सको
कल्पना करने के अधिकार पर भी
अब उनका कब्ज़ा है
तुम मात्र महसूस सकते हो अपने समय के घाव को
हथियार, मलहम, कैंची-पट्टी
सब कुछ ही तो उनका है, उनकी दृष्टि में
तुम लावारिस देश के नाजायज औलाद हो
वे वारिस हैं सल्तनत के क्योंकि
उनके ऊपर सरकारी ठप्पा है|
6.
ये कौन कह रहा है
छोड़ दिया है कोयलों ने कूकना
गुंजार नहीं करते भौंरे
मधुमक्खियां नहीं लगातीं छत्ते
दुर्लभ हो गया है सन्तों का मिलना
ये कौन कह रहा है
कोई किसी को नहीं चाहता देखना
बतियाना, हँसना बोलना
सभी ने छोड़ दिया है एक-दूसरे से
नहीं चाहता कोई किसी के साथ उठना बैठना
ये जो कहते हैं
और कह रहे हैं लगातार
समझिए इन्हें कि बोलते हैं बस
शोर मचाते हैं नहीं रहते परिवेश में ये
सब यथावत है झूठ है इनका कहना
मुर्गे अब भी भोर में बोलते हैं
तितलियां मंडराती हैं फूलों के आसपास
अब भी कोयल कूकती हैं बागों में
रंभाती हैं गाय-भैंसे समय समय पर
मिमियाती हैं बकरियां परिवेश में
वे जो कहते हैं
किसी खास झंडे के पहरुवे हैं
पार्टीलाइन पर गढ़ते हैं सम्वेदनाएँ
हाई कमान जो कहता है वही मानते हैं
वही खाते बिछाते ओढ़ते पहनते हैं
बचना है इनसे अब
यही चाहते ही हैं वे कि न रहे कोई
सूनसान में रमकर बस्तियाँ बीरान हो जाएं
ये दिखाई दें और बोलें इनके झंडे
समाज रहे या जलकर श्मशान हो जाए….
7.
सांड़ नहीं चाहता
सामने से उसे देखकर
कोई सांड कह्कर पुकारे
मौन साध कर चुप-चाप रहता है जैसे
सांड को सबसे अधिक खतरा
सांड के वेश में रहने से नहीं है
सबसे बड़ी चिंता लोगों के दिलो-दिमाग में
सांड दिखने से है
वह चाहता है
नहीं समझे परिवेश उसे सांड
देखे उसे एक बैल की तरह
वह खेतों में भी ख़ट सकता है
दंवरी में भी खप सकता है
पेर सकता है ईख भी
बैल गाडी भी खींच सकता है
रीझ सकता है गायों पर
लड़ सकता है कुश्ती भी
जैसी जिसकी इच्छा हो आजमा सकता है
सांडों की बैठक बैठी है
आज कई दिनों से चर्चा है परिवेश में
सरकार के पास ये मुद्दा है
मुक्त किया जा सकता है उसे सरकारी ठप्पे से
समाज में इस बात की बड़ी चिंता है
सांड होता है सांड ही
सब द्वारा सबको समझाया जा रहा है
जो भूल चुके हैं उन्हें
उसका इतिहास याद दिलाया जा रहा है
हैरान है सांड मनुष्य के दिमाग में
सांड सांड ही कैसे दीखता है
……………………………………………
परिचय : अनिल पांडेय
