विशिष्ट कवि : अभिषेक चंदन

तुम
ख्वाब की तरह जलती हो
मैं
लैम्प पोस्ट की तरह रोशन
राह दिखाता हूँ
न जाने कितनी सदियों का नफरत
मुझे लहूलुहान किया
इसी मोड़ पर
इसी मोड़ पर प्रेम को मुस्कुराते देखा है
रातरानी के गंध में गुलाब को घुलते देखा है
चुपचाप
मैं
लैम्पपोस्ट की तरह

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तुमसे प्यार है
मगर माफ कर देना मुझे
मैं नाभ तक भरने लायक हवा नहीं दे पा रहा
मेरे महबूब
हम जिस समय के पाँव पर खड़े हैं
उसके हाथ
पेड़ इसलिए नहीं काटते
कि पेड़ सूख गए हैं
ईंधन की तलाश है
बस, काटने हैं पेड़
मकानों के जंगल खड़े हो रहे हैं
अब
पेड़ के कुम्हलाने पर
बटोही हाँक नहीं लगाता ध्यान दिलाने के वास्ते
पत्तों से धूल नहीं झाड़े जाते
पानी की बाल्टियाँ भर भर कर उड़ेली नहीं जाती
स्वास्थ्य की प्रार्थनाएँ नहीं की जाती
पेड़ से लिपट कर कोई दिल नहीं उड़ेलता
चूमता नहीं हवाओं को होठों पर
हवा में जहर घुल रहा है
चेहरे पर पट्टी बांधकर घर से निकलते हैं लोग
यूँ तस्वीरों में तो सबकुछ है
तकदीर में सबकुछ नहीं है
जैसे सत्ता अब भी कायम है
शासक अब भी छत्र लिए रंग-चाल बदल रहा है
लेकिन कोई सम्राट जूलियन नहीं है
मेरे महबूब
तुम मुझे टूटने नहीं देती
और मैं फूलों को टूटने नहीं देता
इस तरह हम एक दूसरे के प्यार में हर बार जीते हैं
एक दूसरे के प्यार में हर बार मरते हैं
यही उम्मीद है
अगर बच सकी जो दुनिया
यही मुहब्बत बचा लेगी

3
मेरी पीठ पर रेंगती
अफवाहें
जो तुम्हारी नजरों ने आरे-तिरछे बनाई है
मुझे यकीन दिलाती है
मैं जिंदा हूँ अभी
मेरे एक खत के मुनासिब तेरे पचास खत
बताते हैं
मेरे एक खत का मुकाबला अब भी नहीं है
मेरे पचास खत
काफी है आग लगाने के लिए
जो मैंने कभी लिखे थे
प्यार के लिए

 

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