मां की भौगोलिक दुनिया
- अभिषेक चंदन उर्फ ऋषि कुमार
और इस घर में क्या रखा है
अपनी इच्छाओं की कचोट पर
हमारे सपनों का मुल्लमा चढ़ा रखा है
घर के सपने
पराये और अपने
सब को उठाये कंधे के जोर पर
चकरी- सी नाचती रहती है
जैसे दुनिया को गोल
सिद्ध करना ही है उसे
वह बर्तन मांजती है
दुख मांजता है उसे
मुख मलीन नहीं है
उसके झड़ते फूल से चेहरे
और झड़े पत्ते की तरह
पीले पड़े उसके हाथ
और हाथ से झड़ते आशीष
इतनी ही तो दुनिया है उसकी
जिसमें सदा खुश रहती हैं माँ
इतने में केवल माँ ही
खुश रह सकती है
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