अनदेखे | बहुत ज्यादा होना चाहा | |
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मेरी हथेली पर फफोले नहीं पड़ रहे मैंने तो लगभग जोखिम लेकर रखा था इसे अपनी मुट्ठी में. कहीं ऐसा ही तो नहीं हो रहा हर उम्मीद के साथ ये क्या हो गया कि सूरज ने समेट ली अपनी ऊष्मा और छिपा दी न जाने कहाँ अनेक सूरज अब ऐसा ही करने लग गये हैं कि एक हथेली तक नहीं हो रही गर्म जलना तो दूर की बात है. | दृश्य में मधु मक्खी का छत्ता भी है इसके भीतर शहद है मधु मक्खी के डंक नागफनी के पत्ते गुलाब के फूल के पास कांटे दृश्य में शामिल हैं जो एक बगीचे में अनदेखे से हैं जैसे अनदेखे हैं बगीचे में टहलते हुये कुछ मच्छर नीम के कुछ सूखे हुए फल, अच्छे लोग टहल रहे हैं कुछ गुनगुनाते हुए शहद के जैसी बोलियों वाली टहल रही हैं लड़कियां अनदेखे हैं कुछ लोग जो टहल रहे हैं ज़हर बुझी बातें करते हुए दृश्य में शामिल हैं ये भी इस बगीचे में जो सेल्फी लेते वक्त संजीदा दिखने की ताक में हैं | पूरा जुमला होना चाहा तुमने अगर हो जाते एक मात्रा तो अक्षर के काम आते जब वह शब्द होने के सफर में आता तुम्हारे पास. सुहाना दृश्य होने के लिए परेशान रहे जबकि काफी था होना चश्मे का लेंस ज्यादा मुनासिब होता होना वो रसायन जिसके मिल जाने से कोई पदार्थ हो जाता है दवा बहुत ज्यादा होना चाहा तुमने पहले थोड़ा कम हुये बिना. |
हम जब साथ चलते थे. | तालाब | बस प्रेम हुआ है |
हम जब साथ चलते थे तो हुआ करता था एक उत्सव पेड़ झूमते थे जैसे आसमान एक बड़े फूल में तब्दील होता था रास्तों का हर हिस्सा अपने आप बिछ जाता है आगे आकर हम जब चलते थे साथ तो कोई दुख नहीं चलता था हर सेकंड, जुनून और उमंग से भरा होता था हमारे हिस्से में केवल वे ही पल आते थे जो हमारे साथ चलने के बीच होते थे मौजूद हम जब चलते थे साथ ऐसा लगता था उस समय कोई नहीं चल रहा इतना तेज़ उस समय चलने का संतुलन और किसी को नहीं मालूम हमने साथ चलते हुए लाँघा बहुत लंबा रास्ता बहुत से रोड़ों को रोंदा अनजाने में बहुत से फ़िकरों को दरकिनार किया हमारे साथ के वक़्त का क्या कहना वह दरमियानी था *बसंत* के. वह वक़्फ़ा ही हमारे जीवन का खोखलापन भरता था जिन लम्हों में हम साथ चलते थे हम उन्हीं लम्हों में पलते थे | वर्षों बाद मिले थे हम तालाब से जो सूखा सूखा सा था हमने जैसे ही कदम रखा उसकी गोद में उसने कमल से कहा कि खिलो न जाने कब समय निकाल कर बतया लिया उसने सूरज से जो चमकाने लगा समूचा जल और तो और अपनी झील से की गुहार और लबालब भर गया वह वर्षों बाद मिला था उसे अपनों का संग हमने देखा कि वह हिलोरें ले रहा था उमग उमग कर सूखे से तालाब में आ गई थी जान जब कुछ दोस्त आये थे मिलने वर्षों के बाद. | नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है बस ज़रूरी नहीं लग रहा यह कि ढोल पीटाजाए इसे करते हुए इसे चोरी भी नहीं कहा जा सकता इसमें किसी से कुछ छीना कहां जा रहा है कुछ छुपाने का इल्जाम तो बिल्कुल ही गलत है. बल्कि इल्ज़ाम यदि है तो उन पर है जो जान जाना चाहते हैं सच और फैलाना चाहते हैं झूठी बातें चंदा और तारों की तरह कोई इसे देखे तो देखता रहे पेड़ों और रास्तों की तरह भी बनें लोग चश्मदीद हवा जैसे रहती है शरीक सब जगहों पर वैसे रहना चाहे कोई तो उसका स्वागत है, बीज के अंकुर बनने के दौरान तो कभी नहीं सुनी कोई कानाफूसी, कोई निगरानी नहीं करने पहुंचा जब पर्वत से फूटा था झरना, रोजाना सूर्योदय जैसी बड़ी घटना हो जाती है और कोई नहीं खोजता उसका सुराग यहां भी जो कुछ हो रहा है उसमें भी प्रकृति ही कर रही है अपना काम बस प्रेम हुआ है. क्यों अजूबा की तरह देख रहे हो इसे. |
रक्षाबंधन | ||
छोटा सा डोरा बड़ा काम करने आयेगा. कपास और रेशम के नाम हो जायेगा सारा माहौल. बहिनों के द्वारा पहुंचेगा भाईयों की कलाई तक. प्रेम की तरह यह डोरा चाहेगा कि कभी न टूटे रिश्ते आपस में और मजबूती से बंध ही जायेंगे. मगर बुरी खबरें सुनकर यह डोरा भी हो जायेगा उदास सोचेगा कि खून के रिश्ते ही नहीं सारे रिश्ते बंध जायेें मेरे छोरों से. सोचेगा डोरा क्या करे वह ऐसा कि मर्द के भीतर जाग जाया करे भाई का दिल मन में गुनाह का ख़याल भी आने के पहले. |
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पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविताएं, समीक्षाएं व अनुवाद प्रकाशित. अब तक तीन काव्य संग्रह.
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बधाई