प्रेम रोग
तेज धड़कनों का सच
समय के साथ
शायद बदल जाता है ना
कभी नजरों के मिलने भर से ही
या स्पर्श भर से
स्वमेव तेज रुधिर की धार
बता देती थी कि
हृदय के अलिंद-निलय के बीच
लाल-श्वेत रक्त कणिकाएं भी
करने लगती है प्रेमालाप
वजह होती थीं ‘तुम’
इन दिनों उम्र के साथ
धड़कनों ने फिर से
शुरू की है तेज़ी दिखानी
वजह बेशक
दिल दा मामला है
जहाँ कभी बसती थी ‘तुम’
जिन घुटनों के छिलने की वजह
हुआ करती थी तुम
उन दिनों
उन्ही घुटनों में इन दिनों
डॉक्टर ने बताया कि
कार्टिलेज की परत छिल गयी है
कम चला करिए,
हद ही है ना
तुम और तुम्हारा स्पर्श
उन दिनों
कोलेस्ट्रॉल पिघला देते थे
शायद!
जाड़े में पसीने की बूँदें छलकती थी हमरी
तुम्हारे मिलने के उम्मीद की गर्मी भर से
पर, इन दिनों उसी कोलेस्ट्रॉल ने
दिल की कुछ नसों के भीतर
बसा लिया है डेरा
जो बढ़ा दिया करती हैं धड़कनें
ख़ाम्ख़्वाह!
मेडिकल रिपोर्ट्स
बता रही हैं
करवानी ही होगी
एंजियोप्लास्टी भी
शायद नसों के अन्दर रक्त का बहाव
कोलेस्ट्रोल के बाँध में बंध कर रह गया
आखिर तुम व तुम्हारा स्पर्श
सम्भव भी तो नहीं है
वर्ना एक सर्जरी से बच जाता शायद
शायद प्रौढ़ होने पर हुआ प्रेम
वजहों को बदल देता है
है न !
चश्मे की दो डंडियाँ
तुम और मैं
चश्मे की दो डंडियाँ
निश्चित दूरी पर
खड़े, थोड़े आगे से झुके भी !
जैसे स्पाइनल कोर्ड में हो कोई खिंचाव
कभी कभी तो झुकाव अत्यधिक
यानी एक दूसरे को हलके से छूते हुए
सो जाते हैं पसर कर
यानी उम्रदराज हो चले हम दोनों
है न सही
चश्मे के लेंस हैं बाइफोकल !
कनकेव व कन्वेक्स दोनों का तालमेल
यानि लेंस के थोड़े नीचे से देखो तो होते हैं हम करीब
और फिर ऊपर से थोडा दूर
है न एक दम सच …..
सच्ची में बोलो तो
तुम दूर हो या हो पास ?
ये भी तो सच
एक ही जिंदगी जैसी नाक पर
दोनों टिके हैं
बैलेंस बना कर …… !
बहुत हुआ चश्मा वश्मा !
जिंदगी इत्ती भी बड़ी नहीं
जल्दी ही ताबूत से चश्मे के डब्बे में
बंद हो जायेंगे दोनों …….
पैक्ड !! अगले जन्म
इन दोनों डंडियों के बीच कोई दूरी न रहे
बस इतना ध्यान रखना !!
सुन रहे हो न
तुम बायीं डंडी मैं दायीं
अब लड़ो मत
तुम ही दायीं !
परिधि प्रेम की
परिधि सीमा नहीं होती
पर फिर भी,
एक निश्चित त्रिज्यात्मक दूरी में
लगा रहा हूँ वृताकार चक्कर
खगोलीय पिंडों सा
तुम्हारी चमक और तुम्हारा आकर्षण
जैसे शनि ग्रह के चारों ओर का वलय !
कहीं मैं धूमकेतु तो नहीं
कुछ ऐसा जैसे
मैदान में खूंटे से बंधी हो मरखर गैया
और
जिस सीमा तक पहुँच पाए उसका सींग
बस उससे बचते बचाते हुए
गोलाकार परिधि में ही
हर बाहरी बिंदु पर हो जाए अवतरित
आकर्षण भी, डर भी
यानी दोनों का घालमेल, है समाहित !!
किसी ने कहा
प्यार दूर जाने नहीं देता।
दूसरे ने समझाया
प्यार में भी चाहिए स्पेस !
यानी गाया जा सकता है
दूरियाँ नज़दीकियाँ बन गईं, अजब इत्तिफ़ाक़ है !!