दुःख
दुःख पानी है जो आँखों से बहता है
जिस तरह पानी के कई रास्ते होते हैं
दुःख के भी होते हैं घरों की तरफ़ जाते
और ये घर कैसे होते हैं किनके होते हैं
यह बात दुःख में रहकर समझी जा सकती है
मैं पुराने जूते को उठाता हूँ
लगता है दुःख को उठा रहा हूँ
मैं पुराने टायर को उठाता हूँ
लगता है दुःख को उठा रहा हूँ
मैं पुराने मेज़पोश को उठाता हूँ
लगता है दुःख को उठा रहा हूँ
‘दुःख भारी होता है मृत्यु से’
यह कथन मेरा नहीं उस आदमी का है
जिसका घर ढाया जा रहा है सत्ता के औज़ार से
इस कथन से अब तक पहले
मैं यही, बस यही जानता आया हूँ
कि मृत्यु हर शै से भारी होती है।
विद्रोह
(अग्रज कवि केदारनाथ सिंह केलिए)
आज सबने
विद्रोह किया
कपास ने
नमक ने
माचिस ने
लोहा ने
लकड़ी ने
पानी ने
ककड़ी ने
पत्थर ने
मकड़ी ने
बाँस ने
फाँस ने
माँस ने
विद्रोह किया
लो, आज मैं
तुम्हारी इस क़ैद से
तुम्हारे इस क़ैदख़ाने से
विद्रोह करता हूँ
जहाँ
न सूर्य है
न प्रकाश
जहाँ
न मत है
न एकमत है कोई।
भरोसा
आप हत्यारे पर भरोसा कर सकते हैं
आप उससे विनती करेंगे
वह आपकी जान बख़्श देगा
आप बलात्कारी पर भरोसा कर सकते हैं
आप उससे प्रार्थना करेंगे
वह आपकी प्रार्थना सुन लेगा
आप चोर पर भरोसा कर सकते हैं
आप उससे मिन्नत करेंगे
वह आपका धन वापस कर देगा
आप अपनी सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते
आप हज़ार दरख़्वास्त करते हैं
आप लाख इल्तिजा करते हैं
सरकार आपका धन नहीं लौटाती
सरकार आपकी आबरू लेकर रहती है
सरकार आपकी हत्या करके रहती है
यानी सरकार अब आपके भरोसे को मारकर
ख़ुद को ज़िंदा रखती है और यही सच है।
यह एक उलट समय है
मैंने घायल मछलियों के घाव धोए
फिर उन्हें उस नदी में डाल आया
जहाँ शिकार करना सख़्ती से मना था
ज़ख़्मी दरख़्त का बेहद प्यार से मरहम-पट्टी किया
और दरख़्त को चिड़ियों की हिफ़ाज़त में रख दिया
लेकिन यह एक उलट समय है अकल्पित भी
लोग गीत गाने वाले हंस को बेआवाज़ कर देते हैं
बोलने वाली मैना की ज़िंदगी बेरहमी से छीन लेते हैं
अगर मैं रास्ते पर अधमरा पड़ा हूँ तो पूरा मार देते हैं
तब भी माँ हैं कि अपने पोतों को यह समझा रही हैं :
यह जीवन एक चमत्कार है आसमान के सितारे भी
माँ इन दिनों घर से बाहर जो नहीं निकल रहीं
माँ को लग रहा है कि लोगबाग अब भी एक-दूसरे को
सीने से लगा रहे हैं और एक-दूसरे की ख़ैरियत ले रहे हैं
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परिचय : शहंशाह आलम की कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं. ये निरंतर लेखन कर्म से जुड़े हैं.