अश्विनी कुमार आलोक की दो लघुकथाएं

अश्विनी कुमार आलोक की दो लघुकथाएं

 

मूर्त्तियाँ

मैं स्वयं नहीं समझ पा रहा था कि मैं किस मिट्टी का बना हुआ हूँ।मैंने इससे पहले भी अपने आप को न जाने कितनी बार समझाया होगा कि दुनिया मेरे हिसाब से नहीं चलेगी,पर मेरे तर्क मुझे ही खाये जा रहे थे। मैंने अपनी साइकिल दीवार से भिड़ायी और कमरे में आकर बिछावन पर उलट गया।पत्नी मेरे करीब आकर लौट गयी।बच्चे भी मुझे तवज्जो नहीं देते।मेरे दाँत होठों पर कस गये : ” घर के लोग मेरे सिद्धांतों के विरुद्ध हैं , तो बाहर के लोग क्यों तरजीह दें!” मेरे गालों में दर्द हो गया , मुँह सूखने लगा । मैं आईने के करीब दौड़ा , ” अरे , ये तो लकवा का लक्षण है । ” मैंने घबराहट में दो गिलास पानी निगल लिया , स्वयं को संयत करने की चेष्टा की।तभी घर्र की आवाज से गाड़ी रुकी , बगैर कुछ कहे एसडीओ साहब आकर मेरे करीब बैठ गये।

मैं चुप रहा , शायद अभद्र बोल जाता। वही बोले : ” आज के वक्त में न हर साहित्यकार आपकी तरह होता है , न हर अधिकारी मेरी तरह । आज गांधी जयंती पर प्रार्थना के बाद मोमबत्ती पर हाथ रखकर रिश्वत न लेने की कसम खाने को आपने जैसे ही कहा , मैं पीछे हट गया। ऐसी कसमें तो मैंने पहले भी खायी हैं।पर उन कसमों का क्या!कौशल जी ! बहुत कठिन है , असंभव।यह जगह आपके और हमारे लायक नहीं , कि हमदोनों ही नालायक हैं।मैं झूठी कसम खा सकता था।पर मैं आप जैसे संवेदनशील लेखकों के आदर्श का अनादर नहीं कर सकता।आपकी मूर्त्ति मेरे अंदर गांधीजी की तस्वीर से कम स्पष्ट नहीं।मैं आपके साथ बेईमानी नहीं कर सकता।या तो नौकरी करूँ ,या आपकी तरह साइकिल से पढ़ाता फिरूँ।पर मुझे मेरी पत्नी भले माफ कर दें , बच्चों को बड़े स्कूलों में पढ़ाने और आकर्षक घर में रखने के लिए आप -सा जीवन संभव नहीं।कौशल जी ! मैं भी लेखक था , तभी शहर में आते ही आप जैसे लेखक से मित्रता की।पर अफसोस आपके दिल में बनी अपनी मूर्त्ति को खंडित होने से नहीं रोक सका। यकीन मानिए , आपकी मूर्त्ति मैं अपने दिल में खंडित नहीं होने दूंगा।”

एसडीओ साहब चुप हुए , मैं फिर भी नहीं बोला।वह उठ खड़े हुए, तो मैं भी उठ खड़ा हुआ । वह चलने को हुए , मैंने रोका भी नहीं ।वह आगे बढ़े , तभी मैं उनपर झपट पड़ा।उन्हें अपने कलेजे में समेटकर रो पड़ा : ” एसडीओ साहब! मुझे पहली बार मेरी तरह का कोई आदमी मिला।पर सचमुच हमारे हिसाब से दुनिया नहीं चलेगी ? ”

एसडीओ साहब मेरी चारपाई पर लौट आये,उस दिन दो मूर्त्तियों की आँखों ने अपने आँसू सुखा डाले।

 

नृशंस

”इसमें किस्से जैसा कुछ नहीं है , न ही यह बात हर किसी से कहने की है । ”मेरे बेटे ने टूथब्रश पर पेस्ट लगाते हुए मेरी ओर उपेक्षा से देखा, तो मैं सहम गया और पत्नी की ओर देखकर बोलने लगा ।मेरे किस्से में उसकी भी रुचि नहीं थी , वह बिछावन को इत्मिनान से तह करती रही।पर मैंने अपना दृष्टांत जारी रखना अपना आत्माभिमान माना :” हद तो यह है कि शिक्षा विभाग के जिला कार्यालय के दरवाजे पर यह घटना घटी , वह भी दो – चार लोगों के सामने।मैं भले ही एक शिक्षक से प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के रूप में प्रोन्नत हुआ हूँ , लेकिन अब तो एक अधिकारी हूँ।वह बड़े अधिकारी का आदेशपाल है , तब भी तो आदेशपाल ही है ना ! वह मेरा रास्ता रोककर खड़ा हो गया।बेहूदगी तो यह कि काँख से फाईल को दबाकर खैनी मलते हुए बोलने लगा : ऐसे काम नहीं चलेगा बीइओ साहब , आज तो माल डाऊन करना ही पड़ेगा ।मैने उसकी मंशा का सही अर्थ लगाकर उसी की भाषा में समझाया : अभी तो बीइओगिरी सीख ही रहा हूँ , सब होगा । पर वह अड़ा रहा, दीवार पर मेरे सामने ही ऐसे थूका कि मै सचेत न रहता तो मेरे पैंट पर उसके छींटे पड़ जाते।मैने पचास का नोट उसकी ओर बढ़ाया ।उसके होठों पर प्रतापपूर्ण मुस्कान फैल गयी।मेरी ओर दयाभाव से देखकर अपने शर्ट की जेब में हाथ डाला , तह करके रखे सौ सौ के कुछ नोटों में से एक खींचकर मेरी ओर बढ़ा दिया।मेरा झेंपना स्वाभाविक था ।पर उसने मेरा रास्ता छोड़ने के साथ वह नोट दुबारा अपनी जेब में रख लिया , तो मैंने भी गुस्सा अपने काबू में कर लिया।इतना ही नहीं।बड़े साहब के हुजूर में हाजिर हुआ , तो उन्होंने जो कहा , वह सुनकर मैं गश खाकर गिर न गया , यही गनीमत समझो।बड़े साहब ने कहा : तीन ब्लाॅक , छह सौ तेरह स्कूल ।बहुत अपेक्षा से तुम्हें तीनों का प्रभार दिया
है ।आदेशपाल की तरह मेरी ओर पचास का नोट न बढ़ा
देना ।अब तुम शिक्षक नहीं रहे , हाकिम हो गये हो।मैं सिर झुकाये लौट आया ।

मेरी कथा खत्म हो चुकी थी ।पता नहीं , मेरी पत्नी ने इसका कितना अंश सुना था।वह बगैर कुछ बोले अंदर चली गयी।बेटे ने भी पिच्च – से थूका और बेसिन से चेहरा हटाकर तौलिये से पोंछता हुआ अंदर चला गया।
……………………………………………………………………
परिचय : अश्विनी कुमार आलोक की कई लघुकथाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.
पता : प्रभा निकेतन, पत्रकार कालोनी, महनार, वैशाली, पिन:844506,मोबाइल – 8789335785

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *