एक तीर दो निशान
- ज्वाला सांध्यपुष्प
शाम का वक़्त था। प्रभारी सब-इंस्पेक्टर आर के यादव अपने साथी सब-इंस्पेक्टर सुदीप पांडेय के साथ थाने के पिछवाड़े के एक प्राइवेट कमरे में बैठे जाम टकराते हुए कह रहे थे,
” एसपी साहब की लड़की की शादी में कल इस थाने से भी हम लोगों को जाना होगा और अभी तक जेब खाली ही है। कम-से-कम दस हज़ार चाहिए ही, अन्यथा हमलोग उनकी नज़र पर चढ़ जाएंगे। गिफ्ट ऐसा-वैसा नहीं हो, ध्यान तो रखना ही पड़ेगा।”
” क्या हुआ बॉस! हरिहरपुर फायरिंग कांड वाले केस का दलाल कारी सहनी नहीं दे गया बाकी का पैसा?” उत्सुकतावश पांडेय ने पूछा।
“कहां दे गया।लगता है इसमें भी वह हवलदार नागों सिंह से मिलकर कुछ करामात कर गया। हम लोगों के लिए तो गले की हड्डी बन चुका है यह साला नगबा…। कुछ तो उपाय सोचना पड़ेगा क्योंकि कि इसी के मार्फ़त हमारी सारी सीक्रेट बातें ज़िला और प्रेस तक चली जाती हैं,एस.पी. के साथ-साथ पत्रकारों ने भी नाक में दम कर रखा है।” और कुछ सोचकर धीमे से प्रभारी पुनः बोलते हैं,” नागों सिंह को कहिए कि पटेल चौक पर ठेले लगानेवालों से कुछ सख्ती से हफ़्ता वसूल लाए।”और मोबाइल पर किसी से बतियाने लगे।
तबतक दोनों जने कार्यालय में आ चुके थे।अभी आधा घंटा भी न हुआ था कि स्थानीय पत्रकार का फोन आ गया,” सर जी !अब तो आप विश्वास करेंगे कि अवैध वसूली में रेहड़ी लगानेवालों से उलझने में आपका हवलदार नागों सिंह घायल हो गया।कुछ कीजिए, हालांकि ज्यादा चोट नहीं लगी है उसे, मगर खून तो बह ही रहा है।” मायूसी में पत्रकार ने मोबाइल रख दिया और इधर मुस्कराते हुए प्रभारी सब इंस्पेक्टर पांडेय की ओर मुखातिब हुए,” देखा आपने पांडेय जी! प्लानिंग काम कर गया न। अब तो सांप भी मर गया और लाठी भी न टूटी।जाइए नागो सिंह का इलाज़ करवाने से पहले उसका बयान लेकर एफ़आईआर कर दीजिए। पच्चीस-तीस हज़ार तो सवेरे तक स्वत: आ ही जायेंगे।”
दोनों के ठहाकों से कार्यालय गूंज गया था।