लघुकथा
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जन्म दिन
– डॉ. महिमा श्रीवास्तव
गत वर्ष मैं उदयपुर, मेरे पुत्र से मिलने गई थी और वहां निवास करने वाली, अपनी छोटी बहिन के घर ठहरी थी।
अगले दिन मेरे पुत्र का जन्मदिन था व वह मध्यरात्रि बारह बजे अपने कुछ मित्रों के साथ, मेरे पास यानी अपनी मौसी के घर ,छात्रावास से ,आ गया।
मैं एक सुंदर सा केक उसके लिए ले आई थी। बहिन ने सबके लिए नाश्ते का प्रबंध किया।
पुत्र ने केक काटा ही था कि उसके एक दोस्त ने केक उठा कर उसके मुंह और माथे पर, बेदर्दी से मलना प्रारंभ कर दिया। काफी सारा नीचे कालीन पर भी गिरा दिया।
शायद आजकल यही प्रथा थी।
पर मुझसे मेरे बेटे की दुर्दशा देखी न गई व मैंने उस मित्र को रोकने का प्रयास किया, किन्तु वह तो पूरी उद्दडंता पर उतारू था।
जनवरी की ठंडी रात में उसी समय बेटे का सिर और मुंह, ठंडे पानी से धुलवाना पङा क्योंकि केक की क्रीम बुरी तरह ,आंख, नाक आदि में घुस गई थी। मेरा मन क्षुब्ध था।
अगले दिन पुत्र की फाइनल -परीक्षा का पर्चा भी था जो उसने आंखों में दवा डाल, छींकते- खांसते, मुश्किल से दिया।
कुछ महीने बाद इसी मित्र का जन्मदिन आया।
मैंने अपने बेटे को कहा कि तुम ऐसा भद्दा व्यवहार उसके साथ कतई ना करना। पर उसने कहा- “नहीं मां, इस बार मैंने अपने मित्रों को राजी कर लिया है, हम केक खराब नहीं करेंगे, केक काट कर, सुबह उसे सामने की
झुग्गी- झोंपड़ी वाले बच्चों को खिला कर आयेंगे।“
मैं अपने पुत्र की समझदारी व उचित निर्णय पर गर्वित थी ।
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परिचय : डॉ महिमा श्रीवास्तव की कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.
पता – 34/1, सर्कुलर रोड, मिशन कंपाउंड के पास,
झम्मू होटल के सामने, अजमेर