प्रगतिशीलता का दंश
– दिनेश ‘तपन’
वे उच्च शिक्षा प्राप्त एक सम्पन्न व्यक्ति थे,मगर उन्हें गाँव का वातावरण प्रियकर नहीं लगा,लिहाजा पचास-साठ बीघे पुस्तैनी जमीन,अच्छा खासा पक्का मकान छोड़कर वे राजधानी में जा बसे।ग्रामीण परिवेश का आकर्षण,उन्हें,चमक दमकभरी शहरी जिंदगी से बेहतर नहीं लगा।कभी कभारआ जाते, वर्ना गाँव से बस नाम भरका नाता रह गया।प्रगतिशीलताऔर अंग्रेजियत के हिमायती थे वे।फलतःअभिजात वर्गीय संस्कृति उन्होंने अपना ली।बच्चों को ऊँची तालीम दिलवाई।माँ,बाबूजी जैसे संबोधनों से देहातीपने की बू आती उन्हें प्रतीत होने लगी थी,सो वे क्रमश:मम्मी,डैडी में फिर मामऔर डैड में तब्दील हो गए।छोटा परिवार था।मेधावी बच्चों ने यूनिवर्सिटी में औव्वल रहकर डिग्री हासिल की।बेटा एक कालेज में व्याख्याता लग गया,मगर शादी में पिता की मर्जी का वह कायल न था,अतःकिसी तरह पुत्र का व्यवस्थित विवाह करा पाने भरसे उनका पितृत्व धन्य हुआ। वैसे अब उन्हें कहीं न कहीं अपनी प्रगतिशीलता की चुभन, शिद्दत से महसूस तो
होने ही लगी थी। किन्तु जन्मजात सामाजिक संकीर्ण मनोवृत्ति को पूरी तरह तोड़ पाने का सामर्थ्य उनका मानस नहीं जुटा पा रहा था।उच्च कुलीन संस्कार पोषित उनका मानस प्रगतिशीलता विरोधी बनने लगा।वे अपनी बिटिया कीशादी के लिये कुलीन वर कीतलाश करना चाहते थे,किन्तु माड संस्कृति की हामी,अपनी बेटी के प्रति किंचितआशंकित भी थे। तभी एकदिन बेटी ने कहा,’डैड,आप मेरी फिक्र बिलकुल भी मत करो,मैंनेअपना लाईफ पार्टनर चुन लिया है, यकीन है आप मुझे आशिष दोगे।’
सुनकर हैरानी तो हुई,मगर फिरभीअपनी प्रगतिशील वैचारिक छवि का ख्यालकर उन्होंने शंकित मन से पूछ ही लिया,’कौन है वो,जरा मैं भीतो जानूं अपनी बिटिया की पसंद।कहाँ का है,क्या करता है वह ?’
‘हमने साथ ही एम्में किया है’बिटिया ने कहा,’करता तो कुछ नहीं,अनइम्प्लाय्ड है,मगर उसकी सर्विस सिक्योर्ड है। ‘क्या मतलब?’उन्होंने उत्सुकता से कहा, क्या वह टौपर है? ‘
‘नहीं’ पुत्री ने कहा,’वह एस सी है।’
“क्या ? एस.सी.?? यू मिन शिड्युलकास्ट ?” अनचाहे उनका बदहवास स्वर निकला। ‘यस डैड,हम एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं… ।’
‘ओह!! नो .. नो..।’ उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया।आगे कुछ सुनने समझने की उनकी क्षमता लुप्त हो चुकी थी।
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