पुलकवाली नींद
तुम नदी होते
तुम्हीं से कहा करते
बात मन की
लहर से हम मांग लाते
धार पर बहना
और उल्टी हवाओं में
पांव थिर रखना
तुम हवा होते
दिशा में रंगा करते
लय सपन की
उड़ानों से पूछ लेते
जमीं कीदूरी
एक छोटी हंसी वाली
हाथ की चूड़ी
धूप तुम होते
चमक में लिखा करते
छवि नमन की
हरी पांखों में उतरती
थकन दिन भर की
पुलकवाली नींद आखों
मैं भरी घर की
तुम गगन होते
मेघ की लिखत पढ़ते
सौ जनम की
सुआपंखिया शाम
केसर रंग-रंगा मन मेरा
सुआपंखिया शाम है
बड़े प्यार से सात रंग में
लिखा तुम्हारा नाम है
सौ आमंत्रण बजे स्नेह के
बरसे रंग सुहाग के
यह कैसी कोमलता आंखें
सजल-सजल अनुराग से
थर-थर कंपते से होठों पर
लगता पूर्णविराम है
और हथेली में फूलों से
लिखा तुम्हारा नाम है
खिलने लगे पृष्ठ सब पिछले
बीते-बीते क्षण के
परत-दर-परत लगी गमकने
पंख लगे दर्पण के
चंदन वन की छांहें अलसीं
अंकित ‘ललित-ललाम’ है
तन्मय चुंबन-सिक्त अधर पर
लिखा तुम्हारा नाम है
अंतरंग बातें
हाथों में एक-दो मूंगफलियां
रंगारंग अंन्तरंग बातें
यादों में तह करके रख लें हम
पार्कों में हुई मुलाकातें
एक हंसी फेंक कर इधर-उधर
दूबों को सहलाना प्यार से
पल्लू को स्वत: खिसकने दिया
माथ झुका गंथिल आभार से
कसी हुई पसीजती हथेलियां
पिछले पन्ने बरबस खुल गये
जिनमें बीतता समय थम गया
अनुबंधों को अनुमोदन देने
होठों का एक दस्तखत नया
उजले मन के कपास-से रेशे
सपनों के और सूत कातें