विशिष्ट गीतकार : अनिरुद्ध सिन्हा

रात हुई तो सूरज निकला मन का सपना है

झूठ बड़ा है सच छोटा है वर्षों की उतरन
तन से ज़्यादा झेल रहा मन जीवन की सीलन
जलकुंभी-सा लिपट रहा जो मौसम अपना है

नाम तुम्हारा हृदय पटल पर जब भी लिखते हैं
अनायास अपने ही भीतर बौने दिखते हैं
भीतर का जब यह अफ़साना बाहर छपना है

अधिकारों की मारामारी करते लोग सभी
कर्तव्य पर खाँस-खाँस कर गुजरी एक सदी
आए दिन के इस करतल पर माला जपना है

(2)
आँखों में सूरज है साँसों में खुशबू
करवट में सपनों की छाँव
सजन कभी आओ ना गाँव

पर्वत की बाहों में नदियों की हलचल
बारिश की यादों में करती है कल-कल
सावन की कजरी में पुरवा की थपकी में
थिरकेंगें मौसम के पाँव

संरक्षक जीवन के सभी पेड़-पौधे
कोयल, गौरैया के जहाँ हैं घरौंदे
मेघ कलश बरसाते, हवा संग लहराते
देते हैं सावन को ठाँव

मौसम से जीवन के ये सब है बंधन
घर आँगन, तुलसी, उल्लासित करते मन
मुरझाए पीपल में हर दिन ही जल दें
आँगन में उतरेगी छाँव

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