विशिष्ट गीतकार : गरिमा सक्सेना

पतझर-सा यह जीवन जो था
शांत, दुखद, बेहाल
उसमें तुम फागुन-सा आकर
प्रिय मल गए गुलाल

गम को निर्वासित कर तुमने
मेरा मोल बताया
जो भी था अव्यक्त उसे
अभिव्यक्त किया समझाया
उत्तर तुम हो और तुम्हारे
बिन मैं सिर्फ सवाल

आज प्यार का स्वाद मिला है
जिह्वा फिसल रही है
थिरक रहे अंतर के घुँघरू,
चाहत मचल रही है
चुप थे जो मधु-वचन हृदय के
हुए पुन: वाचाल

कहाँ बीतते थे दिन पल में,
युग जैसे दिन थे वो
नहीं घड़ी की प्रिय वो सुइयाँ
चुभते से पिन थे वो
आए हो तुम तो लगता है
पल-पल रखूँ सँभाल

2
प्रेम संबंधों को नव
पहचान देकर
आपने जीवन सुहाना कर दिया

पा नवल मधुमास
अमराई महकती जिस तरह
सुबह पाकर सुप्त
चिडिया है चहकती जिस तरह
उस तरह मुझको नए
अरमान देकर
आपने जीवन सुहाना कर दिया

मिल गई है भोर
मेरी कपकपाती चाह को
आपने आकर मिटाया
जिन्दगी के स्याह को
मेरी चाहत को नया
उन्वान देकर
आपने जीवन सुहाना कर दिया

हो गई हूँ आज कुसमित
आपकी पाकर छुवन
बँध गई हूँ आपसे
पर मिल गया मुझको गगन
ढाई आखर बोल
का सम्मान देकर
आपने जीवन सुहाना कर दिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *