स्वाभिमान का जीना
लीकें होती
रहीं पुरानी
सड़कों में तब्दील
नियम-धरम का
पालन कर
हम भटके मीलों-मील ।
लगीं अर्जियाँ
ख़ारिज लौटीं
द्वार कौन-सा देखें
उलटी गिनती
फ़ाइल पढ़ती
किसके मुँह पर फेंकें
वियावान का
शेर मारकर
कुत्ते रहे कढ़ील ।
नज़र बन्द
अपराधी हाथों
इज्जत की रखवाली
बोम मचाती
चौराहों पर
भोगवाद की थाली
मुँह से निकले
स्वर के सम्मन
हमको भी तामील ।
मल्ल महाजन
पूँजी ठहरी
दावें पाँव हुजूर
लदी गरीबी
रेखा ऊपर
अज़ब रहे दस्तूर
स्वाभिमान का
जीना हमको
करने लगा ज़लील ।
कोई शेर नहीं है
तालमेल बनाने
अपना
सबके संग हम
रह लेते हैं!
इसकी उसकी
चाहे जिसकी
सुनकर,
अपनी कह लेते हैं।
अपने मतलब
सधने वाली
तिकड़मबाजी
जो करते हैं।
वही अँधेरे में
खुद बिककर
सुबह उजाला
सिर धरते हैं।
ऐसे लोग हमारे
लेकिन !
नहीं कभी
हम शह देते हैं।
रंगे सियारों के
चोले में
अन्दर
कोई शेर नहीं है।
बेईमानों की
लफ्फाजी है
ईमानों
का घेर नहीं है।
ठन्डे बर्फ़
सरीखे गलकर
लोहे को
भी दह लेते हैं।
चोर – चोर
मौसेरे भाई
बिना पांव के
धरती नापें।
सांच कभी न
झुण्ड बनाए
विपदा चाहे
जितनी ब्यापें।
जुर्मों का
प्रतिकार न करते
अपराधी हैं
सह लेते हैं।
बन गए बम
नीलम है
टोकरी भर
एक सूपा से धरा कम
नापना हो
नाप लें सच
है यही जो बोलते हम ।।
तेज हैं
झोंके हवा के
सिर उठाकर दीप जलता
जोश काजर
पारता है
शीश पर
आकाश चौखट
बंदिशों का एक घेरा
ऱोज ठोकर
मारता है ।
घाव पर भी
घाव खाकर
दे गया दिन साध कर दम ।
नींद का
उसनींद खेमा
रीढ़ सीधी कर गया है
पांँव तक
माटी नहीं है ।
वर्जनाएँ
तोड़ सारी
व्यंजना की सांस खींचें
डोर है
पाटी नहीं है ।
राख में
चुप आग बैठी
नयन हों कैसे भला नम ।
हाथ में
अनुभूतियों के
कैमरे हैं बिम्ब भोगे
कैद करतीं
दृश्य सारे ।
बन्द मुँह के
फिर घड़े में
डूबता दिन कसमसा कर
उगते हैं
चांँद तारे ।
आत्मरक्षा
को फटेंगे
दर्द सारे बन गए बम ।।
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परिचय : कवि की ‘अल्पना अंगार पर’ नवगीत-संग्रह और ‘अल्लाखोह मची’ सहित गीत की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं।
संपर्क : गौर मार्ग, दुर्गा चौक, पोस्ट जुहला, खिरहनी कटनी 483501 (मध्यप्रदेश)
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