डॉ शिवदास पांडेय मुजफ्फरपुर के प्रमुख साहित्यकार रहे हैं. इनका चले जाना बिहार ही नहीं, देश की साहित्य-सर्जना के लिए बड़ी क्षति है. कुशल प्रशासक का दायित्व निभाते हुए इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओ में सृजन कर देश को बहुत कुछ दिया है. प्रेम गीतों से पहचान बनाने वाले डॉ शिवदास पांडेय ने करीब डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की. इनमें प्रेमगीतों के अलावा व्यंग्य-संग्रह, लेखों का संग्रह व ऐतिहासिक जमीन पर आधारित उपन्यासों की लंबी शृंखला है. साहित्य सर्जना के लिए इन्हें 2016 में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सम्मानित किया जा चुका है. बीमारी के बावजूद वे वे लगातार साहित्य सर्जना में जुटे हुए थे. उनके निधन पर श्रद्धांजलि स्वरूप उनके कुछ गीत पाठकों के लिए रखे जा रहे हैँ –
मन की मीता सच बतला जा
मन की मीता, बाहर आ जा, सच बतला जा
मुझको तुमने प्यार किया !
थोड़ी कमजोरी छाया-सी
छाई क्या, अव्यक्त हुई तुम
पूरी कमजोरी स्वागत में
अन्तरतम परिलुप्त हुई तुम
फिर क्या हुा, न समझ पा सका, होश न कुछ इजहार किया क्या !
मुझको तुमने प्यार किया क्या !!
गुड्डा मन की गुड़िया रानी
अन्तहीन यह बाल-कहानी
बागों में यौवन उमड़ा था
छटपट अंदर बनी रवानी
दिव्य समाहित भव्य प्रवाहित जीवन गंगा-धार किया क्या !!
मन की मीता, बाहर आओ, सच बतलाओ, मुझको तुमने प्यार किया क्या !!
तेरे पास पहुंच भर जाऊं
कितनी लंबी उम्र जी गया, कब तक अब अमृत बरसाऊं
अब तो बस दो बूंद दवा दो, तेरे पास पहुंच जाऊं
इतनी लंबी उम्र जिया श्क्या
साथ नहीं जब तेरा बोलो
कुछ होगी भूमिका काल की
मेरी आंख खुली तुम खोलो
जल्दी से मंदिर जा हो आ पल दो जी लूं फिर मर जाऊं
तेरे पास पहुंच भर जाऊं
तेरे पास पहुंच भर जाऊं
तुमको ही बस प्यार दिया था
फूलों का उपहार दिया था
देव-देवियां साक्षी सबने
परिणय का इजहार किया था
साजिश नहीं खुदा की यदि कुछ दिन संग जिऊं रात घर आऊं
तेरे पास पहुंच भर जाऊं
देवों को कुछ पता नहीं है
सभी देवियां रूठी-रूठी
बाधायें पथ पर अनन्त हैं
जंगल की हर राह अनूठी
निकल पड़ा दो गीत नये ले तेरे सिरहाने धर आऊं –
तेरे पास पहुंच भर जाऊं
कितनी लंबी उम्र जी गया कब तक अब अमृत बरसाऊं
तेरे पास पहुंच भर जाऊं
मुझको तुमसे बहुत मिला है
मुझको तुमसे बहुत मिला है
कोई चुप हो, चुप कुछ बोले
बंद करें अंत: पट खोले
थककर कह दे – कुछ न मिला है
अपनों ने तो और छला है
कुछ कहता, कुछ कह देने दो
चुप रह सकता रह लेने दो
मुझको तुमसे नहीं शिकायत, कोई शिकवा नहीं गिला है –
मुझको तुमसे बहुत मिला है
जंगल राहें टेढ़ी-मेढ़ी
खतरे पथ पथरीले सारे
अगला मोड़ कहीं मिल लेंगे
कभी न सपने थके हमारे
जंगल-जंगल, पत्थर-पत्थर, कदम-कदम पर फूल खिला है
तुमने क्यों संन्यास ले लिया
मैं जीवन से भला पराजित, तुमने क्यों संन्यास ले लिया
अवसादों से घिरे बंद मन को, सारा विश्वास दे दिया
हारा था मैँ जग जाहिर था
जग जाहिर था तेरा गौरव
तेरा वैभव, तेरी विभुता
लिखा भाग्य मेरे था गौरव
तेरा वैभव, तेरी विभुता
लिखा भाग्य मेरे था रौरब
मैं धागा रणभूमि छोड़कर सारा सुख अधिवास दे दिया
तुमने क्यों संन्यास ले लिया
हारा था मैं कारा में था
बिन मांगे अवकाश दे दिया
अंधकार में हांफ रहा था
तुमने मुक्ताकाश दे दिया
कठिन निराशा में व्याकुल मन को सारा उज्छवास दे दिया
तुमने क्यों संन्यास ले लिया
निकल गये भव-भय जंगल से
पहुंच गये मरुथल से आगे
प्राणों को न मिले जो बिछड़े
बंधे प्यार के कच्चे धागे
जीतेंगे हम जय ध्वज होगा यह सारा एहसास दे दिया
तुमने क्यों संन्यास ले लिया
मन का ताला जड़ा मिला
तुमने ही संकेत दिया था – मिलना बहुत जरूरी है
पहुंचा तेरे घर पर जब मैँ मन का ताला जड़ा मिला
तुमने न्योता देर भी नौटंकी कैसे खेली थी
मैं पहुंचा जब तेरे घर सुनसन विशाल भवन निकला
नृत्य कर उर्वशी-मेनका और धृताची वाद्य करे
मेरा भी एक गीत तुम्हारा सरगम स्वर दे मन बहला
छाई अंदर घोर निराशा मर जाना ही बेहतर था
तेरे घर में ही दुबारा शर्तों का संबंध मिला
मैं पहुंचा जब तेरे घर पर मन का ताला बंद मिला
तेरे घर पर मजलिस जो जमती थी श्रेष्ठ अदीबों की
उसकी तबियत यों खराब थी जैसे हो शाहजहां किला
मैंने स्वाभिमान मन सोचा झुकना नहीं जरूरी है
लौट चला था पथ पर थके जब जीने का अनुबंध छला
मैँ पहुंचा जब तेरे घर पर जीने का था बंद सिला
…………………………………………………………………………………………………………………………………………….
परिचय
जीवन वृत्त् :: डॉ शिवदास पांडेय
डॉ शिवदास पांडेय का जन्म सारण के जई छपरा गांव में 8 फरवरी, 1936 को हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा इनकी सारण में ही हुई. उच्च शिक्षा इन्होंने मुजफ्फरपुर में प्राप्त किया. हिंदी व अंग्रेजी से स्नातकोत्तर करने के बाद इन्होंने पीएचडी किया. कुछ समय तक ये समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक रहे. इसके बाद नेतरहाट विद्यालय में अंग्रेजी शिक्षक के तौर पर नियुक्त हुए. इस दौरान इन्होंने बीपीएससी की परीक्षा पास की. विभिन्न जिलों में प्रखंड विकास पदाधिकारी के पद पर योगदान देते हुए ये 1984 से 1989 तक नगर निगम के प्रशासक रहे. इसके बाद ये सचिवालय में बिहार सरकार के संयुक्त सचिव के पद पर रहे. डॉ शिवदास पांडेय की पहली रचना 1955 में पटना से प्रकाशित नई धारा पत्रिका में प्रकाशित हुई थी.
शहर व बाहर की संस्थाओं से मिला सम्मान
1991 – राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
1991 – कामता प्रसाद सिंह काम सम्मन
1991 – साहित्य विभूषण सम्मान
1999 – अवंतिका विशिष्ट सेवा सम्मान, दिल्ली
2000 – सेकुलर इंडिया हारमोनी अवार्ड,
2000 – विश्व हिंदी सम्मेलन सम्मान
2001 – महाकवि राकेश शिख्र सम्मान
2001 – लक्ष्मी नारायण दूबे सम्मान
2001 – अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य प्रतिष्ठा सम्मान
2002 – सोहन लाल द्विवेदी सम्मान
2004 – फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान
2004 – राहुलु सांकृत्यायन सम्मान
2016 – भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय की ओर से सम्मान
2017 – रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान
डॉ शिवदास पांडेय की प्रकाशित पुस्तकें
नदी प्यासी (काव्य-संकलन) 1982, सागर मथा कितनी बार (प्रेम-गीत) 1992, ओ मेरे मालिक (व्यंग्य-संग्रह) 1992, हिंदी कविता में मिथक की भूमिका (काव्यालोचना) 1995, नचिकेता (व्यंग्य-संग्रह) 1998, यह कविता नहीं है (व्यंग्य-संग्रह) 2001, ज्वार-ज्वार महासागर (प्रेम-गीत) 2001, विचारधारा का सच (लेखों का संग्रह) 2001, द्रोणाचार्य (उपन्यास) 2006, अंजुरी में सप्त सागर (प्रेमगीत) 2008, डर से नहीं लिखी कभी डायरी (गद्य-गीत) 2011, द ग्लोरियस व्यॉस (अंग्रेजी कविता-संग्रह) 2011, गौतम गाथा (उपन्यास) 2013, चाणक्य तुम लौट आओ (उपन्यास) 2015, मानसरोवर मरुमरीचिका (प्रेमगीत) 2017, चौदह मौजा चौदह लोग (लघुकथा-संग्रह) 2018, मैंने यूं प्यार किया (संकलन गीत संग्रह) 2018