पिता के जाने के बाद
पिताजी सीरियस हैं, बड़े भैया का फोन आया तो हतप्रभ रह गया। अभी दो दिन पहले ही तो मैं घर से वापस नौकरी पर
आया था। अच्छे-भले थे, पिताजी। बड़ी मुश्किल से भैया से पूछ पाया कि एकाएक पिताजी को क्या हो गया। रूंधे गले से
भैया बोले- “जमीन पर गिरे फिर नहीं बोले, पोजीशन क्रिटीकल है। आई0 सी0 यू0 में भर्ती हैं। तुरन्त आ जाओ।” भैया के
रिसीवर रखते ही मैं आनन-फानन में घर से निकल पड़ा। टैक्सी पकड़ी। रात को घर पहुंच गया। अस्पताल पहुंचा तो
पिताजी को देख रो पड़ा। जिन्दगी भर एक पल भी आराम न करने वाला व्यक्ति आज बिस्तर पर खामोश पड़ा था। भैया
ने चुप कराते हुए कहा- “संभालो खुद को, ठीक हो जायेंगे पिताजी।” पर मै समझ गया कि पिताजी अब नहीं बचने
वाले। दो दिन पहले ही पिताजी के साथ था। जी भरकर बातें की थी। उन्हें कोई बीमारी भी नहीं थी। फिर कैसे क्या हो
गया ?
अस्पताल में सभी रिश्तेदार आ गये थे। डॉक्टरों से पूछा तो बोले ईश्वर से प्रार्थना करो, वही चमत्कार कर
सकता है, अन्यथा बचना मुश्किल है। सिर की नस फट गयी है। खून फैल चुका है। कुछ सूझ नहीं रहा था कि कैसे बचाऊं ?
पिताजी को देखने लोग आ जा रहे थे। मां, भैया और दीदी बाहर रो रहीं थी। मुझे रह-रहकर रोना आ रहा था। उनकी दो
दिन पहले कहीं बातें जेहन में घूम रही थी। बेटा परोपकार करते रहना, ईमानदारी से जिन्दगी बिताना। ईश्वर सब कुछ
देगा। पिताजी का जीवन भी इसी का पर्याय था। आंखों में उनका सारा जीवन चक्र घूम गया
जब से होश संभाला, मैंने पिताजी को हमेशा घर-परिवार के लिए ही करते देखा। पिताजी बहुत छोटे थे, तब
दादा-दादी गुजर गये। अपने सारे भाई-बहनों को पिताजी ने पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया, नौकरी पर रखवाया, शादी-
विवाह किए। फिर हम बच्चों में लग गये। भैया, दीदी, मुझे पढ़ाया-लिखाया। दीदी की शादी की। हम दोनों भाईयों की
नौकरी लगने तक पिताजी काम करते रहे। अपनी एक कमाई में पिताजी ने इतना सब किया, पर किसी से एक पैसा भी
नहीं मांगा। खुद तकलीफ सही, पर घर-परिवार, बच्चों को किसी चीज की कमी नहीं होने दी। इतने पर भी बड़ा सा
मकान बनवा दिया ताकि हम दोनों भाई, साथ भी रहें तो जगह कम न पड़े। विचारों में खोया था कि डॉक्टर देखने आ
गए। पिताजी की साँसे उखड़ रही थी। वेंटिलेटर पर तो रखे ही थे।
डॉक्टर देख कर चले गए। मुंह से कुछ न बोले। मैं पूछता रहा- “डॉक्टर साहब पिताजी कैसे हैं?” पर वो सुनी
अनसुनी कर गए। अजीब हाल है, इन डॉक्टरों एवं नर्सिंग होमों का। पैसा तो भरपूर लेते हैं, पर मरीज को पूरी तवज्जों
नहीं देते। कमाई के अड्डे बन गए हैं। डॉक्टरी मानवता का पेशा हुआ करती थी, पर अब व्यापार बन गयी है। लाखों
कमाकर भी पेट नहीं भरता। गरीब तो इनके यहां आने की हिम्मत ही नहीं कर सकता। थोडी देर बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टर
, जूनियर डॉक्टर फिर पिताजी को देखने आए। जूनियर डॉक्टर बोली- “सर हम लोग सब कुछ कर चुके हैं, अब कुछ
नहीं हो सकता। सब कुछ दे चुके हैं। जीवन रक्षक दवाओं पर कब तक कोई जीयेगा।” थोड़ी देर में पिताजी की सांस बंद
हो गई। डॉक्टर चले गये। मैं गुस्से से तमतमा गया। क्या है, ये कैसे डॉक्टर हैं ? निराशावादी बातें करते है। इतना भी
नहीं सोचते की मरीज के घरवालों का क्या हाल होगा। डॉक्टर कह रहे थे ले जाओ इन्हें। अब ये नहीं रहे ।
मैं गुस्से में तो था ही। डॉक्टर की बात सुनते ही भड़क पड़ा, जी ले जायेंगे डॉक्टर , हमारी तो दुनिया खत्म हो गयी है।
हम अनाथ हो गये हैं और आपको जल्दी पड़ी है। यदि इस जगह आपके पिताजी होते तो क्या करते आप ? डॉक्टर सुन
कर चले गये। पिताजी खत्म हो गए। खबर बाहर तक चली गयी। सारे लोग रोने लगे। करीब घन्टे भर बाद एम्बुलेंस से
पिताजी को घर ले आए। रात भर रोना-पीटना चलता रहा। सुबह पिताजी का क्रियाकर्म हो गया। घर सूना हो गया।
लोग चले गए पर मेरी आंखों के आंसू थम नहीं रहे थे। आखिर वो मुझे चाहते भी बहुत थे। हारी-बीमारी में पिताजी जी-
जान से सेवा करते थे। पिछली बार जब मेरा एक्सीडेन्ट हुआ था तो पैर में गहरी चोट आयी थी। पिताजी की सेवा का ही
परिणाम था कि मैं जल्दी ही चलने फिरने लगा था अन्यथा महीनों ठीक नहीं होता।
पिताजी के क्रियाकर्म सम्बन्धी सारे कार्य निपटाने के बाद नौकरी पर वापिस आया तो आफिस जाने का मन
नहीं होता था। जब भी मां-पिताजी मेरे पास आते थे, अपने हाथ से नाश्ता चाय देते थे। जन्म दिन पर तोहफा लाते थे।
बड़ी मुश्किल से खुद को आफिस जाने लायक बना पाया। इस बार जन्मदिन आया तो अकेली मां आयी। फूट-फूट कर
रोया। पिछले जन्म दिन पर पिताजी कपड़े-मिठाई लाये थे। इस बार मैने नये कपड़े भी नहीं लिये। बस जन्मदिन आया
और चला गया।
पिताजी को गये काफी दिन हो गये हैं, पर आज भी ऐसा लगता है कि यहीं कहीं आस-पास हैं। जब भी घर
जाता हूं, मां के आंसूओं में पिताजी को पाता हूं। जब तक पिताजी थे बेफिक्र था। अब उनके सारे काम करने पड़ते हैं, तब
समझ आता है, पिताजी कितना काम करते थे। कितनी भाग दौड़ करते थे, कितना तनाव झेलते थे और हम बेफिक्र घूमते
थे। बस खाना, सोना, पढ़ना लिखना, नौकरी करना। अब छोटे-छोटे कामों के लिए भरी दोपहरी, ठण्डी रात में खुद
भागना पड़ता है। पिताजी गर्मी की लू जलती दोपहरी और जाडों की सर्द रात में बाहर निकलने ही नहीं देते थे। बेटा लू
लग जाएगी, बेटा सर्दी लग जाएगी कह कर खुद ही चले जाते थे। सारी जिन्दगी वो संघर्ष करते रहे ताकि हम सब आराम
से रह सके। आज हम लोगों के पास कुछ करने को नहीं बचा है। बस कमाना, खाना। सारे कामों को खुद निपटा गये। बस
छोड़ गये तो अपना परोपकार। मैंने सोच लिया है कि उनके बताए रास्ते पर ही चलूंगा। उनके परोपकारी कामों को आगे
बढ़ाऊंगा, क्योंकि जाने के बाद भी वो मेरे साथ हैं। पिताजी की बात हर दिन याद आती है। भुलाए नहीं भूलती। आफिस
में बैठे बैठे भी याद आते हैं।
आज आफिस से आया तो दिल अच्छा नहीं था। सर्दी के दिन थे। रात देर से लौटा तो सर्दी लग गयी। पिताजी
याद आए। बिना खाए-पिए सो गया। झपकी लगी तो लगा पिताजी पास आए हैं, कह रहे हैं बेटा सर्दी लग गयी क्या?
हल्दी डालकर दूध पी लो, ठीक हो जाओगे। बेटा उदास मत रहा करो, मरने के बाद भी मैं तुम्हारे साथ हूं। बस संघर्ष से
मुंह न मोड़ना, न ईमानदारी छोड़ना। परोपकार करने की भावना दिल में रखना। नींद खुली तो देखा, पिताजी नहीं
दिखे। पिताजी के जाने के बाद अहसास हुआ कि सब कुछ मिल जाता है, पर माता-पिता दोबारा नहीं मिलते। सच कहते
है बडे़ बूढे, पिता के जाने बाद बच्चा अनाथ हो जाता है। वटवृक्ष का साया उठते ही सिर पर गर्मी, सर्दी, बरसात खुद
झेलनी पड़ती है। पिता को गये अरसा हो गया है, पर जब भी मुड़ के देखता हूँ पिताजी मुस्कुराते नजर आते हैं, मानो कह
रहे हैं मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। सच है, बच्चा सोचे या न सोचे, मां-बाप हमेशा बच्चे की भलाई ही सोचते हैं।
पिताजी के आशीर्वाद से ही सब कुछ मिल रहा है। पहली बार पिताजी के जाने के बाद उनकी जरूरत समझ आ गयी कि
पिता बिना बच्चा अनाथ रहता है।
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परिचय: लेखक की कर्ह कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
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