आलेख : डॉ अनिल कुमार पांडेय

जीवन, प्रकृति और समाज की अभिव्यक्ति : समकालीन हिंदी ग़ज़ल – डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय ग़र जमीं पर बाँट देने की हवस बढ़ती रही जंग कंधों पर उठाकर आसमां ले…

विशिष्ट कहानीकार : तरुण भटनागर

महारानी एक्सप्रेस तारा को छोटी बहन की बातें याद आ रही थीं। जब वे गोवा में थे वह वहाँ की औरतों को देखकर चहक उठती थी -‘माँ यहाँ तो बड़ी-बड़ी…

विशिष्ट ग़ज़लकार : दिनेश प्रभात

1 पांव को आये न देखो आंच बस्ती में हर तरफ बिखरे हुए हैं कांच बस्ती में क्यों मरी उसके कुएँ में डूबकर औरत चल रही सरपंच के घर जांच…

विशिष्ट गीतकार : वीरेन्द्र आस्तिक

सर-सर बहा पवन अकस्मात इस मधुवन में सर-सर बहा पवन तभी देखने में आया इक नटखट मौसम झूम उठी हर टहनी जैसे झूम उठें झूमर कई जंगली चिड़ियां बैठी झूल…

पुस्तक समीक्षा : – डाॅ. भावना

भावनाओं का प्रतिबिंब : कई-कई बार होता है प्रेम – डाॅ. भावना “कई -कई बार होता है प्रेम“ प्रगतिशील, प्रतिबद्ध एवं प्रयोगधर्मी यवा कवि अशोक सिंह का सद्य प्रकाशित काव्य-संग्रह…

विशिष्ट कवि : अरविंद भट्ट

चारदीवारी तुम्हारे अपने शहर में, अतिव्यस्त मार्केट की चकाचौंध, और लोगों की रेलमपेल के सहारे आगे बढ़ते, जहाँ सड़क और फुटपाथ के अंतर की सीमा रेखा, शायद अपना अस्तित्व बचाते…