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बच्चों का कोना -

बच्चों का कोना : विकास की राह पर भारत 

August 15, 2020

विकास की राह पर भारत

भारत एक विकासशील देश है।  इस वर्ष भारत ने अपनी स्वतंत्रता के 74 वें वर्ष में कदम रखा है।  लेकिन क्या यह वास्तव में स्वतंत्र है?  15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली लेकिन क्या यह आत्मनिर्भर है?  भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम है आत्मनिर्भर  भारत।  भारत को अपनी जरूरतों और आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए तथा विकसित होने के लिए पहली शर्त आत्मनिर्भर होना है।  गांधीजी इस विचार में दृढ़ विश्वास रखते थे।  इस साल, कुछ महीने पहले, हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक अभियान चलाया था।  इसमें विभिन्न योजनाएं और नीतियां शामिल हैं।  भारत ने स्वतंत्रता के बाद की घटनाओं से उबरने और विकसित होने में इन कई वर्षों का समय लिया है।  यह कोरोना वायरस का समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक झटका है।
 कोविद -19 और लॉकडाउन के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है।  आत्मनिर्भर  भारत अभियान भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान पर केंद्रित है।  इस अभियान के पांच स्तंभ अर्थव्यवस्था, आधारभूत संरचना, प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग पर ध्यान केंद्रित करते हैं।  सरकार की नीति उनके चारों ओर घूमती है।
 भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सबसे आसान तरीका आयातों को कम करना और घरेलू स्तर पर वस्तुओं का निर्माण करना है।  लोगों को स्थानीय उत्पादों को खरीदने और उपयोग करने के लिए आश्वस्त होना होगा।  निर्यात बढ़ाने की जरूरत है।  पारंपरिक हस्तशिल्प और कला को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।  कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।  मेड इन इंडिया के सामानों का उपयोग करते समय प्रत्येक भारतीय दिल में गर्व की भावना उभरनी चाहिए।  लोगों के नजरिए को बदलने की जरूरत है।  विदेशी निर्मित उत्पाद के उपयोग को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।  हमारे दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले कई उत्पाद भारत में नहीं बने हैं।  कुछ चीजें हैं, जो पूरी तरह से आयात की जाती हैं।  विदेशी मुद्रा आवश्यक है लेकिन भारत को स्वयं के द्वारा अधिक से अधिक माल का उत्पादन करने का प्रयास करना चाहिए।  इसके लिए उद्योगों को स्थापित करने की जरूरत है।
 लेकिन हम इसमें क्या कर सकते हैं?  लोगों की भागीदारी हर लोकतंत्र की आधारशिला है।  यह वही है जो एक देश को विकसित करता है और एक अभियान सफल होता है।  भारत तभी विकसित होगा जब वह हर नागरिकों का विकास करेगा।  मैक्रोइकॉनॉमिक्स सूक्ष्मअर्थशास्त्र पर बहुत निर्भर करता है।  दूसरे शब्दों में, हम नागरिकों के रूप में जो करते हैं, वह भारत को एक राष्ट्र के रूप में प्रभावित करेगा।  भारत तभी आत्मनिर्भर बनेगा जब हम, भारतीय आत्मनिर्भर बनेंगे।  आयातित चीजें खरीदना अब एक प्रवृत्ति नहीं है।  स्वदेशी वही है जिसके बारे में हर कोई बात कर रहा है।  सभी को इसे समझना होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत के विकास में उनकी भूमिका को समग्र रूप से देखना होगा।  गांधीजी ने एक बार कहा था कि हमें कोई काम करते वक्त  सबसे गरीब और  कमजोर आदमी के बारे में सोचना चाहिए कि मैं जो काम कर रहा हूँ उससे उस ग़रीब आदमी को कितना फ़ायदा होगा ।  जब लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था को चलाने में उनके महत्व का पता चलेगा, तभी वे भारत के बारे में खुद से ज्यादा सोचना शुरू करेंगे।  एक  देश को कभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं किया जा सकता है, हमेशा प्रगति की गुंजाइश होती है।  अगर हर कोई पहले, अपने या अपने से पहले, राष्ट्र के बारे में सोचना शुरू कर दे, तो भारत का विकास  कभी नहीं रूकेगा।
आद्या भारद्वाज, कक्षा  -दसवीं, प्रभात तारा स्कूल, मुजफ्फरपुर, बिहार
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संपादकीय

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जीवन, शृंगार और सृजन का महीना सावन

सावन का महीना चल रहा है। सावन में कजरी और बारहमासा गाने का चलन है। रिमझिम पड़ती फुहार के बीच जब स्त्रियां अपने हाथों में हरी- हरी मेहंदी लगा झूले पर झूलती होती हैं, तब उनके होंठ से स्वतः बारहमासा फूट पड़ते हैं। बारहमासा या कजरी प्रियतम के पास न होने पर अपनी वेदना को प्रकट करने का बड़ा माध्यम है। वह गाती हैं- सावन हे सखी सगरो सुहावन, रिमझिम बरसे मेघ हे/बिजली जे चमके रामा लौका जे लौके, सेहो देखे जियरा डेराय हे। इस बारहमासा में व्यक्त12 महीने की चित्रात्मक प्रस्तुति मन को व्यथित करता है। सावन महीने में हरी साड़ी, हरी मेहंदी और हरी चूड़ी पहने स्त्री बिल्कुल धरती सरीखी दिखती है। उतनी ही धैर्यवान, धीर- गंभीर और पालन- पोषण करने वाली। धरती जहाँ अन्नपूर्णा होती है, वहीं स्त्री साक्षात अन्नपूर्णा की अवतार। घर गृहिणी से होता है। कहा गया है- बिन घरनी, घर सुन। रिश्ते-नाते की मिठास हो या रिश्तों को सहेजने, संवारने की कला, स्त्री इसमें पूर्ण निपुण होती है। सावन में धरती का स्त्री हो जाना और अपनी जनन क्षमता से पूरी धरती को धन-धान्य से भर देना या उसे हरे रंग में रंग देना स्त्रीत्व को प्रतिष्ठापित ही तो करता है। रामचरितमानस का वर्षा ऋतु वर्णन हो या कालिदास का मेघदूत, रचनाकारों की प्रिय ऋतु वर्षा ऋतु ही रही है। अंग्रेजी साहित्य में भले वसंत ऋतु की महिमा सबसे अधिक व्यक्त की गई हो, परंतु भारतीय रचनाकारों को सावन की रिमझिम फुहार, आसमान का कभी स्याह तो कभी चंपई होना आकर्षित करता है। धरती पर वर्षा की बूंद से उत्पन्न सोधीं गंध हो या आसमान में इंद्रधनुष का सम्मोहित करने वाला रूप। दुल्हन बनी पृथ्वी भला किसको सृजन के लिए उद्वेलित नहीं करती  होगी?

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प्रकृति के सारे शृंगार को अपने भाल पर समेटे भगवान शिव का प्रिय महीना सावन तुम्हारा हर एक सृजनशील हृदय के आंगन में स्वागत है,अभिनंदन है!

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