विशिष्ट कवि : जनार्दन मिश्र

मै उसे कहां ढूंढूं

उसने मुझे पोस्टकार्ड पर लिखा
सिर्फ मेरे पता के सिवाय
कुछ नहीं

पोस्टकार्ड पर लगी मुहर भी
काफी धुंधली थी
जिसे माइक्रो ग्लास से भी नहीं
पढ़ा नहीं जा सकता था

उसने अपना नाम भी
जरूरी नहीं समझा था लिखना
भले ही , अपने ठहरने का स्थान
नहीं लिखा होता

जब पहचान ही गया हूं उसकी लिखावट
फिर उसको मै कहां ढूंढूं
कहां
कैसे उसके लिए कुछ लिखूं
नहीं समझा पा रहा हूं
अपने मन को
और चाहकर भी अपने को
रोक नहीं पा रहा हूं
कारण क्या है
यह भी मै नहीं
जान पाया
अबतक !!!

तुम्हारा इंतजार

किस तरह
और किस योग से
किया जा सकता है
तुम्हारा इंतजार
मै समझ नहीं
पा रहा हूं

न जाने क्यों
तुम
दर्द दे रही हो मुझे
पल पल
और मै किसी मोमबत्ती की मानिंद अपनी
दोनों शिराओं से जल रहा हूं
या किसी बर्फ की तरह
हर पल
पिघल रहा हूं

जैसे तुम्हारी ही आंच पर
धीमी धीमी
पक रहा हूं
और तुम मुझे पका रही हो अपनी बहुत ही
अप्रतिम धड़कनों
व गर्म गर्म
ऊष्मा से

जल भी नहीं रहा हूं कि जलकर बराबर के लिए
समाप्त हो जाऊं मै
फिर भी जला रही हो तुम मुझे
मेरी नींद में भी

तड़प रहा हूं पानी के बेगैर किसी मछली कि तरह

तुम बहुत ही अजीब हो
और बहुत ही विचित्र
अप्रतिम
न जाने क्यों तुम्हारी धड़कनों से धड़क रहा होता हूं मै पल प्ल / हर पल
तुम्हारे ही इंतजार में
न जाने क्यों
और किस तरह !!!

अगर मै जानता

अगर मै जानता कि किसी प्यार की जलन
बड़ी ही बेतरतीब होती है
जो हर पल रुलाती
और सताती है
कहती कुछ भी नहीं
दर्द देती वह
ज्यादा है

तो मै किसी से कभी भूलकर भी प्यार
नहीं किया होता

पर ,अब मै क्या करूं
कितनी बार जिऊं
और कितनी बार मै मर जाऊं
अबतक मै नहीं जान पाया कि यह सब कैसे हुआ
और किस तरह से हुआ

किस आकाश और धरती के आकर्षण
प्रत्याकर्षण में हुआ कि हम
आत्मसात हुए
जहां सृजते रहे सुख कम
दुख ही ज्यादा __!!!

 

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