आलेख : प्रसून लतांत
माटी के कलाकार हकु शाह जिनकी उपलब्धियों का फैलाव बहुत होता है। कोई भी उनके व्यक्तित्व और उनकी कृतियों को विस्तार में बह सकता है। लेकिन उन्हें नाप नहीं सकता…
माटी के कलाकार हकु शाह जिनकी उपलब्धियों का फैलाव बहुत होता है। कोई भी उनके व्यक्तित्व और उनकी कृतियों को विस्तार में बह सकता है। लेकिन उन्हें नाप नहीं सकता…
इकलसूमड़े हम सब हैरान थे । वर्मा दम्पत्ति का सदा उजाड़ और फीका सा रहने वाला मकान इस वक्त हमारे कस्बे के सबसे चतुर ठेकेदार की देख-रेख में अपना श्रृंगार…
अजीब सी लड़कियां वो अजीब लड़की सिगरेट पीते हुए साँसे तेज अन्दर लेती थी चिहुँक कर आँखे बाहर आने लगती हैं पर खुद को संभालते हुए, खूब सारा धुंआ गोल…
1 लगते हैं उनको अपने सितम भी सितम कहां होती है ज़ालिमों की कभी आँख नम कहाँ.. हर ग़म समेट लेती थी आँचल मे अपने माँ.. अब सूझता नहीं कि…
हिंदी ग़ज़ल का प्रभुत्व यानी हिंदी ग़ज़ल का नया पक्ष – लेखक – अनिरुद्ध सिन्हा/ समीक्षक – शहंशाह आलम हिंदी ग़ज़ल की आलोचना मेरे ख़्याल से हिंदी साहित्य में उतनी व्यापक अथवा विकसित…
भावों के रंगों की भरमार- ‘नीले अक्स’ – समीक्षक – केदारनाथ ‘शब्द मसीहा’ कविता और वो भी जीवन से जो पैदा हो, पढ़ने पर पाठक के मन तक पहुँचती है।…
गीत ने समय ने मुझको जहां जब भी सताया गीत ने मुझको वहां तब-तब बचाया ! लड़खड़ाया तो लिया धर हाथ हौले ले गया कुछ दूर अपनी बांह खोले झाड़…
ग़ज़लें 1 बेवजह, बात बेबात होती, रही तिश्नगी दिल मे सौग़ात होती, रही जिस तरह अजनबी, अजनबी से मिले ज़िंदगी से मुलाक़ात, होती रही इक तरफ जीत के ख़्वाब ज़िंदा…
ग़ज़लें 1 प्यार का नाम क्या लिया उसने अपना दामन सजा लिया उसने गुनगुनाती हुई ग़ज़ल की तरह दर्द अपना छुपा लिया उसने क्या ग़रज़ थी उसे शरारत की हाथ …
अंगुली में डस ले बिया नगनिया ……. – डॉ भावना सुबह से ही अनमनी थी वह. जेठ का महीना तो जैसे कटता ही नहीं. दिन भी बहुत बड़े होते हैं…