विशिष्ट ग़ज़लकार :: मधुवेश
ग़ज़ल मधुवेश हो रहा था मैं बड़ा माँ का चिमटना देखता इक अदद घर के लिए दिन-रात खटना देखता हाथ मेरे और भी ज्यादा जला देता तवा मैं नहीं माँ…
ग़ज़ल मधुवेश हो रहा था मैं बड़ा माँ का चिमटना देखता इक अदद घर के लिए दिन-रात खटना देखता हाथ मेरे और भी ज्यादा जला देता तवा मैं नहीं माँ…
ग़ज़ल सुशील साहिल पिता के हाथ में पहली कमाई दे नहीं पाया कभी बीमार माँ को मैं दवाई दे नहीं पाया लियाक़त औ मशक़्क़त से जो आगे की तरफ़ निकला…
1 वो ही बाबा है ,वो ही मैया है कुछ बदल सा गया कन्हैया है मेरी गंगा है मेरी जमुना भी जो मेरे गाँव की तलैया है अब कहाँ नीम…
1 तन्हाइयों की हद से गुज़रना पड़ा मुझे इक अजनबी का साथ भी अच्छा लगा मुझे अच्छे दिनों की आस भी क्या दिल फ़रेब थी जीना बड़ा मुहाल था…
1 रस्ता चाहे जैसा दे साथी लेकिन अच्छा दे प्यार पे हँसने वालों को प्यार में थोड़ा उलझा दे जिसमें सदियां जी लूं मैं इक लम्हा तो ऐसा दे जैसा…
ग़ज़ल 1 यों कभी लगता है जैसे मुश्किलों से दूर हूँ, और कभी लगता ख़ुशी की महफ़िलों से दूर हूँ। मान से होना वो ख़ुश अपमान से होना दुखी,…
1 कभी बैठेंगे हम,सुख-दुख कहेंगे, अगर ज़िन्दा रहे तो फिर मिलेंगे। बहुत दुख-दर्द जीवन में सहे हैं, ये कुछ दिन की तबाही भी सहेंगे। हज़ारों कोस घर की…
1 मैं भी हाँ मे हाँ मिलाना सीख ही लूँ जैसा गाना हो बजाना सीख ही लूँ। बॉस की हर बात पर, बेबात पर भी क़हक़हा खुलकर लगाना सीख…
1 मुझमें इक दुःख भरा आदमी रहता है वर्षों से अधमरा आदमी रहता है झुकता नहीं किसी भी ताकत के आगे ऐसा ही इक खरा आदमी रहता है …
“ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुरसत सर उठाने की” तो फिर कोशिश करेँगे हम भी कुछ-कुछ मुस्कराने की। बशर के बीच पहले भेद करते हैं सियासतदाँ ज़रूरत फिर जताते हैं…