विशिष्ट कवयित्री : पंखुरी सिन्हा
सोपान तोड़कर अपार अनंत से, अनाम सा फूल कोई बेनाम सा फूल कोई बदनाम सा फूल कोई कि मादक है खुशबू उसकी बेहोश करती है बुलाती है चर, अचर, निशाचरों…
सोपान तोड़कर अपार अनंत से, अनाम सा फूल कोई बेनाम सा फूल कोई बदनाम सा फूल कोई कि मादक है खुशबू उसकी बेहोश करती है बुलाती है चर, अचर, निशाचरों…
प्रेम रोग तेज धड़कनों का सच समय के साथ शायद बदल जाता है ना कभी नजरों के मिलने भर से ही या स्पर्श भर से स्वमेव तेज रुधिर की धार…
तुम ख्वाब की तरह जलती हो मैं लैम्प पोस्ट की तरह रोशन राह दिखाता हूँ न जाने कितनी सदियों का नफरत मुझे लहूलुहान किया इसी मोड़ पर इसी मोड़ पर…
गुम हो गई कविता के मिलने की खुशी बीते बरसों को पलटकर देखना मुश्किल होता होगा , लेकिन तुम्हें बताऊँ ? बावरे मन ने तो इस सफर को महज चालीस…
षड्-ऋतु विरह कवित्त वसंत पवन मधुर बहे, अली प्रेम राग कहे, राग ये घायल उर व्याकुल बनाते हैं l पोर-पोर नव प्राण, मधुर कोयल गान, सजनी-विछोह में ये मुझे न…
मौसम की रंगरेज़ (गिरिजा कुमार माथुर की एक कविता को पढ़ते हुए) लोग कहते रहते हैं कि ख़्वाबों की बदौलत ज़िन्दगी के बरस नहीं कटते फिर भी बो लिया है…
स्कूटी चलाती बेटी एक दिन देखती हूँ क्या कि — सहेलियों को अपने पीछे बिठाकर फर्राटे से स्कूटी चलाती हुई चली आ रही है बेटी फटी की फटी रह गई…
पुनर्रचना डूबना भी तैयारी है नए सफर के में निकलने के पूर्व पश्चिम में डूबना पूरब में उगने की तैयारी है पश्चिम और पूरब तर्क हैं महज़ तथ्य यह है…
चूल्हा वह एक स्त्री के हाथ की नरम मिट्टी है आँच में जलते गालों की आभा आत्मा के धुँए का बादल और आँख का लोर झीम-झीम बहता काजल वह आसमान…
अपनों के लिए ईश्वर को साथ लिए चलती है स्त्री सामा चकेवा के बहाने पहुँच जाती है नइहर भावजों से तिरस्कृत होकर भी नही चाहती अनबन रोक देती है भाई…