विशिष्ट ग़ज़लकार : आलोक श्रीवास्तव

हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,
गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या

धुएँ की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या

उतर जाए है छाती में, जिगरवा काट डाले है,
मुई तनहाई ऐसी है, छुरी, बरछी, कटारी क्या

तुम्हारे अज़्म की ख़ुशबू, लहू के साथ बहती है,
अना ये ख़ानदानी है, उतर जाए ख़ुमारी क्या

हमन कबिरा की जूती हैं, उन्हीं के क़र्ज़दारी है,
चुकाए से जो चुक जाए, वो क़र्ज़ा क्या उधारी क्या

*कबीर को श्रद्धा सहित समर्पित, जिनकी पंक्ति पर यह ग़ज़ल हुई.

2

सखी पिया को जो मैं न देखूँ, तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ,*
के’ जिनमें उनकी ही रोशनी हो, कहीं से ला दो; मुझे वो अँखियाँ

दिलों की बातें दिलों के अंदर, ज़रा-सी ज़िद से दबी हुई हैं,
वो सुनना चाहें जुब़ाँ से सब कुछ, मैं करना चाहूँ नज़र से बतियाँ

ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है,
सुलगती साँसें, तरसती आँखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियाँ

उन्हीं की आँखें, उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की ख़ुशबू,
किसी भी धुन में रमाऊँ जियरा, किसी दरस में पिरो लूँ अँखियाँ

मैं कैसे मानूँ बरसते नैनो, के’ तुमने देखा है पी को आते,
न काग बोले, न मोर नाचे, न कूकी कोयल, न चटकी कलियाँ

*हज़रत अमीर ख़ुसरो को समर्पित जिनकी पंक्ति पर यह ग़ज़ल हुई

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