इम्तिहा-इम्तिहा
मुख़्तसर सी जमीं, मुख़्तसर आसमाँ
उसपे इतना घना,ये धुआँ, ये धुआँ.
वो मोहब्बत का सारी उमर यूँ मेरी
सिर्फ़ लेता रहा , इम्तिहा, इम्तिहा
अपने दामन में अंगार बांधे था जो
शोख़ नज़रों से था, मेहरबाँ , मेहरबाँ
उससे पूछो सफ़र जिस ने तन्हा किये
जिसके पीछे चले, कारवाँ- कारवाँ
रंगो-ख़ुशबू से लबरेज़ था जो कभी
वो किधर है मेरा, गुलिस्ताँ- गुलिस्ताँ