विशिष्ट ग़ज़लकार : कृष्ण बक्षी

इम्तिहा-इम्तिहा

मुख़्तसर सी जमीं, मुख़्तसर आसमाँ
उसपे इतना घना,ये धुआँ, ये धुआँ.

वो मोहब्बत का सारी उमर यूँ मेरी
सिर्फ़ लेता रहा , इम्तिहा, इम्तिहा

अपने दामन में अंगार बांधे था जो
शोख़ नज़रों से था, मेहरबाँ , मेहरबाँ

उससे पूछो सफ़र जिस ने तन्हा किये
जिसके पीछे चले, कारवाँ- कारवाँ

रंगो-ख़ुशबू से लबरेज़ था जो कभी
वो किधर है मेरा, गुलिस्ताँ- गुलिस्ताँ

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *