के.पी. अनमोल की दो ग़ज़लें
1
है दिल से ये निकलती सदा वन्दे मातरम
मेरे वतन, तू मेरी वफ़ा वन्दे मातरम
नापाक हौसलों से कहो ख़ैर अब करें
अब हमने है क़फ़न पे लिखा वन्दे मातरम
आवाज़ दी हमें है अगर सरहदों ने तो
दिल चीख़-चीख़ बोल उठा वन्दे मातरम
तुझ पर शहादतों के उठे मन में गर ख़याल
साँसों ने बार-बार कहा वन्दे मातरम
दिल पर हुकूमतों की कोई बात जब चली
परबत, नदी, शजर ने कहा वन्दे मातरम
करते हैं रोज़-रोज़ तेरे हक़ में हम सभी
रब से सलामती की दुआ वन्दे मातरम
‘अनमोल’ ख़ुशनसीब हो जो तेरी गोद में
लेने अगरचे आये क़जा वन्दे मातरम
2
बदन लहू से हुआ तर तो बोले जय भारत
हुए जो हौसले जर्जर तो बोले जय भारत
माँ भारती के सपूत ऐसे शेर थे जिनको
दिखाये खौफ़ ने तेवर तो बोले जय भारत
दीवाने जान हथेली पे रख के लड़ते चले
मचल के तन से गिरे सर तो बोले जय भारत
तमाम दर्द सहे हँसते-हँसते फिर भी कभी
उठा न ज़ुल्म का पत्थर तो बोले जय भारत
सितम की आँख में आँखें गड़ा के गाते रहे
क़हर गिरा अगर उन पर तो बोले जय भारत
दिलेर लोग थे सचमुच कि वे जिन्हें ‘अनमोल’
दिखाया दुश्मनों ने डर तो बोले जय भारत