1
पांव को आये न देखो आंच बस्ती में
हर तरफ बिखरे हुए हैं कांच बस्ती में
क्यों मरी उसके कुएँ में डूबकर औरत
चल रही सरपंच के घर जांच बस्ती में
आग के शोले उसी की ओर लपके हैं
जिस गली में रह रही थी सांच बस्ती में
सेठ, थानेदार ,मुखिया, पंच, पटवारी
डालते डाके ये दिन में पांच बस्ती में
ऐ कबूतर! आज तू आकाश में मत उड़
प्यार की चिट्ठी हमारी बांच बस्ती में
2
झील है, तट है, लहर है, कश्तियां हैं
पार जाने पर मगर पाबंदियां हैं
वेदनाएं, यातनाएं ,वर्जनाएं
नारियों की बस यही उपलब्धियां हैं
टूट जाएं, छूट जाएं, फूट जाएं
शत्रुओं के गीत की तुकबंदियां हैं
याचनाएं, प्रार्थनाएं, अर्चनाएं
बेबसी की ये सभी अभिव्यक्तियां हैं
ढेर पीड़ा, ढेर आंसू, ढेर टूटन
साल की ये तीन वेतन वृद्धियां हैं
थक गये हम,पक गये हम, छक गये हम
जिंदगी में गुत्थियां ही गुत्थियां हैं
3
लोग जो भी जी रहे हैं जिंदगी संत्रास की
चैन देती हैं उन्हें अब गोलियां सल्फास की
जानती अच्छी तरह से माचिसों की तीलियां
कौनसी साड़ी बहू की, कौन-सी है सास की
देखना जल्दी बनेंगे हम महाराणा प्रताप
रोटियां नजदीक चलकर आ रही हैं घास की
एक दिन का दर्द सुनकर तुम रुआंसे हो गये
यह कहानी है हमारी दोस्त! बारहमास की
पूछता है हर निरक्षर देश की सरकार से
क्या मिला उनको, जिन्होंने हर परीक्षा पास की
ढह न जाये फिर कहीं इंसानियत का ये भवन
आइये, ईंटें जमाएं फिर यहां विश्वास की
4
सर छुपाने को नहीं है एक टप्पर टीन का
दे रहे लालच हमें वो मखमली कालीन का
किस तरह बेटा रखेगा लाज मां के दूध की
पी रहा है आजकल वो दूध सोयाबीन का
देश की तकदीर वो बच्चा लिखेगा हाथ से
बीनने का कर रहा जो काम पोलीथीन का
आज भी डरता है हल्कू ठाकुरों से, सेठ से
आज भी गिरवी रखा है खेत मातादीन का
हाथ जोड़ो, वोट लो ,फिर तेज ठोकर मार दो
चल रहा कितना सहज ये सिलसिला तौहीन का
एक निर्धन को चिकित्सक ने सरल- सी राय दी
लो “विटामिन” और सेवन कीजिये” प्रोटीन” का
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परिचय : ग़ज़लकार दिनेश प्रभात का गीत-ग़ज़ल में प्रतिष्ठित नाम है
संप्रति : संपादक – गीत गागर
संपर्क : अशोका गार्डेन, भोपाल
मो. 9926340108
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