रमेश कँवल की छह ग़ज़लें
1
बदला बदला सा है मेरा दफ़्तर
रूप सज्जा में है नया दफ़्तर
बायोमेट्रिक से लोग आते हैं
सीसीटीवी लगा हुआ दफ़्तर
लैपटॉपों के साथ सिस्टम भी
फ़ाइलों से हुआ जुदा दफ़्तर
फ़ाइलें पल में ढूंढ लेते हैं
जल्द निपटाता है भला दफ़्तर
आंसुओं ने लगा दिया जमघट
मेरी यादों का जब खुला दफ़्तर
मुजरिमों की न हो ज़मानत जब
जेल में खोलें ज़ुल्म का दफ़्तर
फ़ाइलें देख अहलिया ने कहा
अब ‘कँवल’ घर बनाएगा दफ़्तर
2
डिजिटल करे पढ़ाई ग़म
बोलें सभी बधाई ग़म
खुशियों के मौसम में भी
काटे बहुत मलाई ग़म
जार जार रोये मन जब
बेटी करे बिदाई ग़म
आहिस्ता से आ पहुंचे
देता नहीं दिखाई ग़म
खुशियों से महरूम करे
कर लेवे जो सगाई ग़म
कितना भी नासाज़ रहूँ
माँ कर दे तुरपाई ग़म
ग़म को चाहे कौन ‘कँवल’
कर ले भले बड़ाई ग़म
3
मेरी आँखों में आ गए आँसू
ग़म का क़िस्सा सुना गए आँसू
जबसे बेदख़्ल है ख़ुशी उसकी
उसकी आँखों को भा गए आँसू
सामना ग़म से जब हुआ उसका
सुर्ख रुख को भिगा गए आँसू
बैन जब अंजुमन हुआ कोई
साज़िशों को ग़ला गए आँसू
बारिशों से ये काम हो न सका
आतिशे-दिल बुझा गए आँसू
मेरी ख़ुशियों की इंतिहा न रही
ग़म दुखी के मिटा गए आँसू
मीर का दर्द पीर मीरा की
चुटकियों में उड़ा गए आँसू
देखते ही व्यथा विसर्जन की
झील नदियों पे छा गए आँसू
द्रौपदी को ‘कँवल’ पता न चला
कृष्ण पर क्या न ढा गए आँसू
4
बरसों बाद ज़मानत पर है आई ग़ज़ल
लाज से दोहरी हो गई है सकुचाई ग़ज़ल
जीवन के अनुभव को ढाल के शे’रों में
मंचों पर इस दौर में है इतराई ग़ज़ल
नुक्कड़ पर के चाय के संग बल खाती है
होटल में क़ालीनों पर घबराई ग़ज़ल
तुकबंदी की गलियों में हैं भटक रहे
पर दुष्यंत सी प्यारी कब हो पाई ग़ज़ल
शहरों के महंगे कोठों पर गुमसुम थी
चैन मिला निर्धन के घर जब आई ग़ज़ल
सागर मंथन करते रहती है हरदम
अमृतघट जो मिला हँसी, मुस्काई ग़ज़ल
कृष्ण ‘कँवल’ रहते हैं रथ पर गाइड जब
अर्जुन तब कह पाता है मनभाई ग़ज़ल
5
जब फेंके कोई मुझ पे तेरे नाम का पत्थर
देता है बहुत दर्द वो इलज़ाम का पत्थर
अफ़साना, कहानी सभी हो जाते हैं रौशन
जब फेंकते हैं वो लबे -गुलफ़ाम का पत्थर
बे लुत्फ़ नज़र आते हैं लज्ज़त के दरीचे
जब यार से उलझे दिले-बदनाम का पत्थर
मधुशाला की चौपाई कि खुशियों की रुबाई
हासिल हो तभी जब मिले ख़य्याम का पत्थर
सच्चाई छुपाने से कभी छुप नहीं सकती
पानी में दिखाई दिया शिवनाम का पत्थर
पत्थर को तराशा गया इस दस्ते-हुनर से
न्यारा है अवध में बड़ा श्री राम का पत्थर
आग़ाज़ ‘कँवल’ उनके इशारों का था दिलकश
पर दिल में महकता रहा अंजाम का पत्थर
6
ग़म के दस्तरख्वान पर ख़ुशियाँ सजा सकता हूँ मैं
छाँव में काँटों की फूलों को खिला सकता हूँ मैं
ज़ालिमों के ज़ुल्म से बेशक बचा सकता हूँ मैं
साथ देकर आपकी हिम्मत बढा़ सकता हूँ मैं
हाथों में युवकों के अब पत्थर कहाँ है देखिये
दस्त में उनके हुनर आला थमा सकता हूँ मैं
बायोमेट्रिक हाज़िरी से है इज़ाफ़ा काम में
टेक्निक से इक नया भारत बना सकता हूँ मैं
टिमटिमाते जुगनुओं की बस्तियों की खैर हो
एक सूरज हूँ उन्हें पल में बुझा सकता हूँ मैं
आई मिस यू , आई लव यू वायरस के जाल में
फंसने वाली लड़कियों को कब बचा सकता हूँ मैं
फ़िक्र के दफ़्तर से शोहरत की उगाही के लिए
देश को परदेश में गाली सुना सकता हूँ मैं
कौन कहता है ‘कँवल’ सारे मुख़ालिफ़ मिल गए
अब भी उनको एक दूजे से लड़ा सकता हूँ मैं
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परिचय – रमेश कँवल जाने-माने ग़ज़लकार हैं. इनके कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं
पता – पटना, बिहार