यहाँ मिली हैं हड्डियाँ, वहाँ मिला है खून|
जंगल से बदतर हुआ, बस्ती का कानून||
आखिर कब कैसे हुई, दरवानों से चूक|
दूर देश से आ गई, दिल्ली में बंदूक||
कैसा ये विश्वास है, कैसा है अनुबंध|
सात भाँवरो ने गढ़े, जन्मो के सम्बन्ध||
जो भूखों की चीख का, नही जानता मर्म|
आखिर वो कैसे करे, जनहित कारी कर्म||
सिखा रही है कृषक को, मालिक की हर बेत|
भूखे सोना ठीक है, नही जोतना खेत||
आया है परदेश से, मेरे मन का राम|
घर मन्दिर जैसा हुआ, हृदय अयोध्या धाम||
तटबंधों को तोड़ती, छोड़ पर्वती छोर|
मुस्काने मढ़ने चली, नदी गाँव की ओर||
शाखों पर लगने लगी, बाज गिद्ध की भीड़|
गौरैय्या को चाहिए, छोड़ चले अब नीड़||
बढ़ी नदी की धार में, साहस की दरकार|
विजय मन्त्र है पढ़ रही, नाविक की पतवार||
धरती पर जब भी हुआ, अणु बम्बों का खेल|
सदियों के इतिहास में, मानवता को जेल||
क्षणिक सफलता ने किया, कुछ ऐसा मगरूर|
हाव-भाव के भँवर में, हुआ लक्ष्य से दूर||
गीदड़ की आवाज पर, सहमा सिंह समाज|
राजनीति ने काट दी, साहस की परवाज||
…………………………………………………….
परिचय : कवि की दोहा सहित कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.
संपर्क : ग्राम -रूद्रपुर, पोस्ट – खजनी, जिला – गोरखपुर, पिन- 273212
मो. 8052253857
Bahut hi Sundar pakti hirday ko chhu gai
Bahut shandar