विशिष्ट कवि :: जनार्दन मिश्र
जनार्दन मिश्र की तीन कविताएं 1 मेरी मां बहुत ही प्यारी न्यारी दुलारी मेरी धरती है मां मेरी प्रकृति है मां मेरा सबकुछ है मां मेरी नींद मेरी लोरी है…
जनार्दन मिश्र की तीन कविताएं 1 मेरी मां बहुत ही प्यारी न्यारी दुलारी मेरी धरती है मां मेरी प्रकृति है मां मेरा सबकुछ है मां मेरी नींद मेरी लोरी है…
हर पल की सांसें डॉ सुजीत वर्मा हर पल की सांसें मां से। रोज़ की सुबह मां से। जिह्वा एवं कंठ में स्वाद मां के हाथों निवाले से। आंखों में…
पुनरावृत्ति अजय श्रीवास्तव तरु का सालाना जीवन-चक्र पतझड़ और गिरे पत्तों को इकट्ठा करने के कुछ पहले ही हरियाली का फिर जीभ चिढ़ाना ठगा-सा मैं केवल एक जीवन-चक्र के साथ…
आशीष मोहन की तीन कविताएं मुहब्बत इस बार मुहब्बत के, कुछ शब्द लिखे हमनें। इक मां, फिर मां, यही कई बार लिखे हमनें छुअन मां के हाथों की नाजुक छुअन…
मां श्यामल श्रीवास्तव 1 एक मुकम्मल शब्द है मां मां एक मुकम्मल जिन्दगी जिन्दगी की मुकम्मल कविता का रुहानी अहसास– मां ही तो है। 2 हर दौर में होती है…
मां की भौगोलिक दुनिया अभिषेक चंदन उर्फ ऋषि कुमार और इस घर में क्या रखा है अपनी इच्छाओं की कचोट पर हमारे सपनों का मुल्लमा चढ़ा रखा है घर के…
कस्तूरबा मधुकर वनमाली बड़े नसीब वाले थे बापू उन्हें तुम जो मिली थी,बा और तुम्हारा यह नाम कहलाती तुम जो,माँ न तो उन का दिया और न हीं उन के…
बारिश की पहली फुहार डॉ पंकज कर्ण प्रेम से उपजे जज़्बातों सूरज की किरणों एवं कसमसाते हुए सागर के ज्वार-सा प्रलयकारी समय जब हार जाता है अपनी ही चौखट पर,…
सबसे पहले माँ ब्रज श्रीवास्तव माँ केवल माँ नहीं है सुखद उपस्थिति है किसी जज़्बात का माँ कोई जन्नत नहीं है वह तो खालिस धरती है धरती पर मौजूद घर…
बारिश में जूते के बिना निकलता हूँ घर से ■ शहंशाह आलम बारिश में जूते के बिना निकलता हूँ घर से बचपन में हम सब कितनी दफ़ा निकल जाते थे…