अभिनव अरुण की चार कविताएं
छोटी कविता !
बहुत दिनों बाद जेठ की ठेठ तपती दुपहरी में
बरसे है बादल तेज आंधी के साथ
सड़कों से उठी है सोंधी महक
बहुत दिनों बाद उखड़े हैं
झाड़ – झंखाड़ झंडे – डंडे
साफ़ धुले नज़र आ रहे हैं रास्ते
जैसे बहुत दिनों के सूखे के बाद हुई है
छोटी सी कविता
‘चाँद माँ के आशीष की लोई है
या दूर कहीं आसमान के भी उस पार
मुझे याद कर माँ मेरी रोई है
ये तारें हैं उसके गोल चटख आंसू
चांदनी है माँ की दुआओं की रोशनी
बिखरी हुई छत घर आँगन और दालान तक
जहां ताखे पर रखी है
मेरी आधी अधूरी कविताओं की डायरी
और उसके बगल में है वही लालटेन
जिससे माँ हर शाम घर में किया करती थी चिरागाँ ‘
जेठ की ठेठ दुपहरी में सोचता हूँ
ज़रूरी है कवि का लिखते पढ़ते रहना
और शायद छपते और चर्चा में रहना भी
क्योंकि जब दो छोर पर बंधी रस्सी
हिल रही हो हवा में तो ज़रूरी है
किसी का उस रस्सी पर होना
और ज़रूरी है किसी का ढोलक बजा
मजमा इकठ्ठा करना
माँ
खुश तो बहुत होगी तू आज
आँगन में तुलसी चौरा पर मिला आशीर्वाद
बंद सांस बंद आँख
मिला तेरा प्यार
फल रहा है
चल रहा है
संसार की अपेक्षाओं
और उपेक्षाओं
को सहेजता
शब्द शब्द रोता हँसता
गाता गुनगुनाता
उदासी के गीत
मैं मिलूँगा तुझसे
एक रात उजाले में
देखूंगा तेरा चेहरा
जिसे कभी नहीं देखा
मिलूँगा उन आकृतियों से
जिन्हें मैंने हर रोज़ गढ़ा
भोग के कैनवास पर
कहूँगा
आज छू लेने दे
अपने पांव
मेरी माँ
खुश तो बहुत होगी तू आज
छाँव
जब भी थक जाओ
जीवन की ठेठ दुपहरी में
निर्जन राहों पर
जहां हो ठूंठ ही ठूंठ
क्षण भर रुक बांच लेना
स्मृतियों में बसी
बचपन की छोटी सी कविता
माँ के छापों वाले आँचल सी शीतल
माँ
देखा न तुझे
जाना भी नहीं
तेरा रूप है क्या
और रंग कैसा
पर माँ तू मुझमें रहती है.
मैं चलता हूँ
पर राह है तू
हैं शब्द तेरे और भाव तेरे
माँ फूलों सा सहलाती तू
और काँटों को तू चुनती है.
हैं हाँथ मेरे कविता तेरी
ये अलंकार ये छंद सभी
माँ तू ही सबकुछ गढ़ती है
मैं लिखता रहता हूँ बेशक
तू सबसे पहले पढ़ती है.
तू पालक है और पोषक भी
तू ही माँ सुबह का सूरज
और चाँद की शीतल छाँव भी तू
माँ मैं जब भी तितली बनकर
छूता हूँ तेरी पंखुड़ियां
‘तू खुशबू बन खिल’ कहती है .
माँ रोता मैं तू पलकों में
मेरी आकर छुप जाती है
जब खिल खिल कर मैं हँसता हूँ
तू अधरों में बस जाती है
तू पर्वत है और झरना भी
माँ मैं जब नौका बनता हूँ
तू दरिया बनकर बहती है
माँ तू मुझमे ही रहती है.
मेरे अंतर में बसती है
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