शान से जीने दो
– मुकेश कुमार सिन्हा
कभी
बाँध कर देखो
दो-ढाई किलो का पत्थर
पेट से
पाँच-छः महीने तक।
ऐ पुरुष!
पता चल जायेगा
कितना दर्द सहती हूँ
कितना त्याग करती हूँ
और
कितने अरमान के साथ
खिलाती हूँ ‘कली’!
मेरे त्याग
और
मेरे सब्र की परीक्षा
कैसे ले पाओगे ?
ढोकर देखो न पत्थर
पेट से!
ऐ मनुष्य!
कद्र करना सीखो
औरत की।
मत खेलों
उनकी भावना से।
मत बनाओ उन्हें
बच्चा पैदा करने वाली मशीन
उन्हें
जीने दो
शान से
स्वच्छंदता से।
उसके दर्द को
उसके त्याग को
महसूस करो।
मत बनो बाज
कबूतर के शहर में।