निहाल सिंह की पांच कविताएं
भूल
मैं भूल जाता हूंं कि
नाश्ते में
क्या खाया था
मैं भूल जाता हूं की
कमरे में कितनी
खिड़कियां है कितने
रौशन दान है
मैं भूल जाता हूं
बगीचे में
पुष्पो को नीर पिलाना
साॅंखों की टहनियों
को काटना
पल्लवों को उठाकर
कूड़ेदान में डालना
मैं भूल जाता हूं
किताबों को मेज़
पर रखना
खिड़कियां बंद करना
किरायेदार
प्रातः को आया था
एक किरायेदार स्वयं
नन्हे -नन्हे
दो बालको के साथ
किराया पूछा जब
कमरे का तो
फट से कह दिया मैंने
दो हजार लगेंगे
वह अपना मुंह
बनाकर मेरी और
देखता है
फिर कहता है कुछ
कम नही हो सकता क्या
मैंने कहा सस्ता चाहिए तो
पड़ोसी कल्लू के यहा चले
जाओ एक हजार में मिल जायेगा कमरा
टूटा- फूटा
शौचालय के किवाड़ की
कुन्दी टुटी पड़ी है
कमरे के दरवाजे
के बीच में बड़ा
सा सुराख निकला हुआ है
घर के अंदर की तस्वीरें
दिखती हैं
बाहर से गुजरने वालो को
जाओ ले लो
बिटिया
देखकर मुझे वो दौड़कर
चली आती है मेरे पास
और नन्हे -नन्हे
हाथों को मेरी और
बढ़ाती है
आइसक्रीम के वास्ते
आइसक्रीम
प्राप्त होने पर
दौड़कर अपनी अम्मा
की ऑंचल की ओट में
छुप जाती है
आइसक्रीम खाने की
बाद खिलौनों की
मांग करती है
जोरों से रोने लगती है
अगली सुबह को
बड़ा सा खिलौना
लाने का वादा करके
उसे चुप कराता हूं
चीटियां
खेत की टेडी -मेडी
पगडंडियों से होकर
गुजरती है काली- पीली सी
असंख्य चीटियां
शक्कर की टुकड़ियों को
दूर तलक गुड़ाती हुई
लेकर जाती है झुंड में
कसकर पकड़ती है वो
स्वयं के भोजन को
छुड़ाने का प्रयत्न भी
असफल होता है
सम्पूर्ण चीटियां झुंड
बनाकर चलती है
एक लम्बी कतार में
इंसान की बस की बात कहां
एक समूह में मिलकर चलने की
ऐसा तो बस चीटियां
ही कर सकती हैं
पहाड़ की सीढ़ियां
ऊंचे पहाड़ पर लगी
हुई है सीढ़ियां बड़ी-बड़ी
काले पत्थरों की बनी हुई
युवा अवस्था में
चढ़ जाते थे एक साॅंस में
हिम की चोटी पर
अब तो चार सीढ़ियां
चढ़ने में ही साॅंसे
उखड़ने लगती है
फेफड़े से सांय-सांय
की ध्वनि निकलती है
नाक की दो नलियो से
बाहर की ओर
अब पहले जैसी उर्जा
कहां थमी हुई है
काया के भीतर
यूरिया खाद से
पक्के हुए अनाज
मिलते है खाने को
दूध घी में भी
मिलावटें होती हैं
ऐसे में कहां से आयेगी शक्ति
काया में
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परिचय : निहाल सिंह की कविताएं पत्र-पत्रििकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं
संपर्क – झुंझुनूं ,राजस्थान