विशिष्ट कवयित्री: पूनम सिंह
(बाबा की सजल स्मृति को समर्पित) एकमुश्त बहुवचन है तुम्हारी कविता फक्कड़ अक्खड़ और घुमक्कड़ तीन विशेषणों से परिभाषित तुम्हारा नाम अपनी बहुपरती संरचना में पूरी एक कविता है जब…
(बाबा की सजल स्मृति को समर्पित) एकमुश्त बहुवचन है तुम्हारी कविता फक्कड़ अक्खड़ और घुमक्कड़ तीन विशेषणों से परिभाषित तुम्हारा नाम अपनी बहुपरती संरचना में पूरी एक कविता है जब…
मुंगेर के युवा ग़ज़लकार विकास की गजल संग्रह “उछालो यूँ नहीं पत्थर” से गुजरते हुए – कुमार कृष्णन आधुनिक हिन्दी गजल अपने मौलिक चिंतन तथा विशिष्ट कथ्य-प्रतिभा के बल पर…
1 आदमी थे हम छोडकर घर-गाँव, देहरी–द्वार सब आ बसे हैं शहर मे इस तरह हम भी प्रगति की दौड़ को तत्पर हुए. चंद डिब्बों मे ‘गिरस्ती’ एक घर…
खुद कलामी मेरे रूखसार पे जो हल्की हल्की झुर्रियां आ गई हैं यकिनन उस को भी आ गई होंगी जिंंदगी के सफ़र मे उमर के जिस ढलान पर मैं खडा…
बलात्कार एक सामाजिक अपराध बनाम बीमार समय और समाज हम जिस समय और समाज में रह रहे हैं वह अपने सामूदायिक दायित्वों की पूर्ति की दृष्टि से बीमार है…
निकाह की दावत सुबह से ही पूरा गाँव चहल-पहल में डूबा था. लग रहा था जैसे कि पूरा गाँव ही एक टांग पर खड़ा हो गया हो. हर कोई…
1 निगाहें मेरी जाती हैं जहाँ तक नज़र आता है तू मुझको वहाँ तक महब्बत की अजां देता रहूँगा कोई आये, नहीं आये यहाँ तक कमर तक आ गया आबे-मुहब्बत…