विशिष्ट कवि :: सुशील कुमार
सुशील कुमार की सात कविताएं 【1】 पगडंडियों पर चलते हुए मैंने देखा – चरवाहे अपनी गायें चराते गाते जा रहे थे शायद कोई ताजा गीत, हां एक लोकगीत.. ओस से…
सुशील कुमार की सात कविताएं 【1】 पगडंडियों पर चलते हुए मैंने देखा – चरवाहे अपनी गायें चराते गाते जा रहे थे शायद कोई ताजा गीत, हां एक लोकगीत.. ओस से…
प्रमोद झा की चार कवितायें आखिरी चीख पत्थर की जमीन, जंगल के आत्यन्तिक कटने से बेहद आक्रोशित आदिवासी युवक शहरी चाल चरित्र औ चेहरो पर बडे हिकारत के भाव…
नरेश अग्रवाल की दस कवितायें सहारा मां, पिता को एक ताबीज पहना दो अपने हाथों से इससे उनकी आयु सुरक्षित रहेगी जब भी भय सताएगा कोयले की खान में…
निवेदिता झा की तीन कवितायें जब तुम याद आये जब हुई बारिश बहनें लगा शहर के पोर पोर से धूल भरनें लगी नदियाँ सोधीं खुश्बू से भरा मन जब…
ब्रज श्रीवास्तव की पांच कविताएं सच बोला तो.. पहली बार मैंने सच बोला था लोग खुश हुए थे. दूसरी बार बोला तो कानाफूसी हुई तीसरी बार बोला तो मुझे समझाईश…
धान रोपती औरतें धान रोपती औरतें आँचलिक भाषा में गाती हैं जीवन के गीत अवोध शिशु की तरह पुलक उठता है खेत का मन उनके हाथों के स्पर्श से …
भरत प्रसाद की पांच कविताएं पिता को मुखाग्नि वह सबसे दुश्मन रात थी जब विदा हुए पिता जीवन से बिछी छाया की तरह पड़ा हुआ शरीर पुकार रहा था, हर…
1. एक औरत दरवाजे से बाहर झांकी औरत को झांकने लगी हजारों निगाहें जो टिकी थी दरवाजे पर ही उन निगाहों में कुछ पहरेदार थे कुछ आवारा , लुच्चे –…
डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह की चार कविताएं ढेर सारे अक्टूबर मैं अपने ऊपर का आकाश बदल दूंगा अब, छूट जाएंगी बहुत बातें, यहीं रह जाएंगी, क्वार की उमस, कपासी मेघ,…
भादो में भुनेसर राइडर राकेश अंतिम भादो की इस आधी रात टिटहरी के द्रुत-मद्धम ताल के बीच बूंदें उतरने की आवाज़ें आ रही हैं घास, डिब्बे, पत्ते, टीन, पानी और…