विशिष्ट कवयित्री : डॉ प्रतिभा सिंह  

अहल्या सुनो राम ! पूरी दुनियाँ जानती थी कि दोषी इंद्र था पर मुझे ही क्यों श्राप का भागी बनाया गौतम को महर्षि बनने का लालच था या सामाजिक भय…

विशिष्ट कवि : असलम हसन

मुश्किल है आसाँ होना कितना मुश्किल है आसाँ होना फूलों की तरह खिलखिलाना चिड़ियों की तरह चहचहाना कितना मुश्किल है सुनना फुर्सत से कभी दिल की सरगोशियाँ और देखना पल…

विशिष्ट कवयित्री :: रंजीता सिंह

  मन की स्लेट औरतों  के  दुःख बड़े  अशुभ  होते  हैं और  उनका  रोना बड़ा  ही  अपशकुन   दादी  शाम  को घर  के  आंगन  में लगी  मजलिस  में  , बैठी …

विशिष्ट कवयित्री :: मृदुला सिंह

वसंत और चैत वसंत जाते हुए ठिठक रहा है कुछ चिन्तमना धरती के ख्याल में डूबा मुस्काया था वो फागुन के अरघान में जब गुलों ने तिलक लगाया था अब…

नारी चेतना के दोहे : हरेराम समीप

नारी चेतना के दोहे : हरेराम समीप हर औरत की ज़िंदगी, एक बड़ा कोलाज इसमें सब मिल जाएँगे, मैं, तुम, देश, समाज नारी तेरे त्याग को, कब जानेगा विश्व थोड़ा…

विशिष्ट कवयित्री :: डॉ राजवंती मान

सामर्थ्य मुझ पर विश्वास रखो मेरी दोस्त ! मैं तुम्हारे शिथिल / मरणासन्न अंगों को उद्दीप्त करुँगी करती रहूंगी भरती रहूंगी / तुम्हारी पिचकी धमनियों में अजर उमंगें लहू में…

विशिष्ट कवयित्री: पूनम सिंह

(बाबा की सजल स्मृति को समर्पित) एकमुश्त बहुवचन है तुम्हारी कविता  फक्कड़ अक्खड़ और घुमक्कड़ तीन विशेषणों से परिभाषित तुम्हारा नाम अपनी बहुपरती संरचना में पूरी एक कविता है जब…

विशिष्ट कवयित्री :: स्मृति शेष रश्मिरेखा

समय के निशान एक अर्से बाद जब तुम्हारे अक्षरों से मुलाक़ात हुई वे वैसे नहीं लगे जैसे वे मेरे पास हैं भविष्य के सपने देखते मेरे अक्षर भी तो रोशनी…