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बच्चों का कोना -

बच्चों का कोना : विकास की राह पर भारत 

Byadmin

Aug 15, 2020 अड़तीससवां संस्करण

विकास की राह पर भारत

भारत एक विकासशील देश है।  इस वर्ष भारत ने अपनी स्वतंत्रता के 74 वें वर्ष में कदम रखा है।  लेकिन क्या यह वास्तव में स्वतंत्र है?  15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली लेकिन क्या यह आत्मनिर्भर है?  भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम है आत्मनिर्भर  भारत।  भारत को अपनी जरूरतों और आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए तथा विकसित होने के लिए पहली शर्त आत्मनिर्भर होना है।  गांधीजी इस विचार में दृढ़ विश्वास रखते थे।  इस साल, कुछ महीने पहले, हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक अभियान चलाया था।  इसमें विभिन्न योजनाएं और नीतियां शामिल हैं।  भारत ने स्वतंत्रता के बाद की घटनाओं से उबरने और विकसित होने में इन कई वर्षों का समय लिया है।  यह कोरोना वायरस का समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक झटका है।
 कोविद -19 और लॉकडाउन के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ है।  आत्मनिर्भर  भारत अभियान भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान पर केंद्रित है।  इस अभियान के पांच स्तंभ अर्थव्यवस्था, आधारभूत संरचना, प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग पर ध्यान केंद्रित करते हैं।  सरकार की नीति उनके चारों ओर घूमती है।
 भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सबसे आसान तरीका आयातों को कम करना और घरेलू स्तर पर वस्तुओं का निर्माण करना है।  लोगों को स्थानीय उत्पादों को खरीदने और उपयोग करने के लिए आश्वस्त होना होगा।  निर्यात बढ़ाने की जरूरत है।  पारंपरिक हस्तशिल्प और कला को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।  कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।  मेड इन इंडिया के सामानों का उपयोग करते समय प्रत्येक भारतीय दिल में गर्व की भावना उभरनी चाहिए।  लोगों के नजरिए को बदलने की जरूरत है।  विदेशी निर्मित उत्पाद के उपयोग को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।  हमारे दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले कई उत्पाद भारत में नहीं बने हैं।  कुछ चीजें हैं, जो पूरी तरह से आयात की जाती हैं।  विदेशी मुद्रा आवश्यक है लेकिन भारत को स्वयं के द्वारा अधिक से अधिक माल का उत्पादन करने का प्रयास करना चाहिए।  इसके लिए उद्योगों को स्थापित करने की जरूरत है।
 लेकिन हम इसमें क्या कर सकते हैं?  लोगों की भागीदारी हर लोकतंत्र की आधारशिला है।  यह वही है जो एक देश को विकसित करता है और एक अभियान सफल होता है।  भारत तभी विकसित होगा जब वह हर नागरिकों का विकास करेगा।  मैक्रोइकॉनॉमिक्स सूक्ष्मअर्थशास्त्र पर बहुत निर्भर करता है।  दूसरे शब्दों में, हम नागरिकों के रूप में जो करते हैं, वह भारत को एक राष्ट्र के रूप में प्रभावित करेगा।  भारत तभी आत्मनिर्भर बनेगा जब हम, भारतीय आत्मनिर्भर बनेंगे।  आयातित चीजें खरीदना अब एक प्रवृत्ति नहीं है।  स्वदेशी वही है जिसके बारे में हर कोई बात कर रहा है।  सभी को इसे समझना होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत के विकास में उनकी भूमिका को समग्र रूप से देखना होगा।  गांधीजी ने एक बार कहा था कि हमें कोई काम करते वक्त  सबसे गरीब और  कमजोर आदमी के बारे में सोचना चाहिए कि मैं जो काम कर रहा हूँ उससे उस ग़रीब आदमी को कितना फ़ायदा होगा ।  जब लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था को चलाने में उनके महत्व का पता चलेगा, तभी वे भारत के बारे में खुद से ज्यादा सोचना शुरू करेंगे।  एक  देश को कभी भी पूरी तरह से विकसित नहीं किया जा सकता है, हमेशा प्रगति की गुंजाइश होती है।  अगर हर कोई पहले, अपने या अपने से पहले, राष्ट्र के बारे में सोचना शुरू कर दे, तो भारत का विकास  कभी नहीं रूकेगा।
आद्या भारद्वाज, कक्षा  -दसवीं, प्रभात तारा स्कूल, मुजफ्फरपुर, बिहार

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संपादक की कलम से

संपादकीय –

किताबी ज्ञान के साथ बच्चों को व्यवहारिक शिक्षा भी दें

बसंत पंचमी के बाद ठंड की अघोषित छुट्टी तय मानी जाती है। लोग माघ में ही  फागुन की उमंग से लवरेज हो जाते हैं। मां सरस्वती की आराधना के बाद चेहरे पर गुलाल लगाने की परंपरा आज भी कायम है। सरस्वती माता को विदा करते हुए बच्चे अबीर से सराबोर हो जाते हैं। बच्चों के उल्लास को देखकर बड़े भी खुद को रोक नहीं पाते एवं कुछ देर के लिए अपने बचपन में चले जाते हैं। उन्हें भी याद आता है पूजा के अवसर पर आयोजित  सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा  रात- रात भर जाग कर इनके लिए की गयी तैयारी । प्रसाद के रूप में बुनिया, केसौर और बेर का इंतज़ार भला कौन नहीं करता था!  आज सरस्वती पूजा के अवसर पर  अंग्रेजी स्कूल बंद कर दिए जाते हैं, जिसे देखकर बेहद अफसोस होता है। पढ़ाई के अलावा इन सभी आयोजनों का भी अपना महत्व होता है। पूजा के लिए चंदा जुटाने से लेकर मूर्ति का साटा( एडवांस), प्रसाद की खरीदारी तथा पंडाल की साज-सज्जा इत्यादि सब कुछ विद्यार्थी के जिम्मे। विद्यालय में इस तरह के आयोजन का मकसद  किताबी ज्ञान के साथ-साथ  बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा देना भी होता है। कुछ अभिभावकों को इस तरह का आयोजन पढ़ाई में बाधा लगता है। वे चंदा को गलत परिपाटी के रूप में देखते हैं  । पर, मेरा मानना है कि चंदा के बहाने ही सही हम एक दूसरे से मिलते हैं। अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं। छोटी- सी उम्र में अपनी बात पूरी तरह से रख कर एक आयोजन को सफल करना कहीं- न-कहीं बड़े-बड़े आयोजन का पूर्वाभ्यास ही तो होता है। हमेशा पठन-पाठन को ही सफलता का एकमात्र मार्ग समझने वाले लोग अपने बच्चे को अंततः तन्हाई में धकेल देते हैं ।उनके बच्चों को अच्छी नौकरी तो मिल जाती है पर, जीवन जीने के लिए अच्छे दोस्त नहीं मिल पाते। पैसा तो बहुत कमा लेते हैं पर, अपनापन नहीं कमा पाते। हमें अपने बच्चों को पूर्ण मनुष्य बनाना है न कि पैसा कमाने वाली एक मशीन।

पिछले कई महीनों से हम कोरोना की त्रासदी में जीने को मजबूर थे। सरकार ने इस बीमारी से बचाव हेतु टीकाकरण शुरू कर दिए हैं। टीका का  पहला डोज स्वास्थ्य कर्मी को दिया गया, जो उचित ही था।दूसरे चरण में पूलिस, नगर निगम तथा अन्य लोगों को गाइड लाइन के अनुसार देना शुरू हो गया है।  उम्मीद है, हम शीघ्र ही इस बीमीरी को मात देने में सफल हो जाएँगे ।चिकित्सा विज्ञान इसके लिए बधाई का पात्र है।

शीत अब विदा लेने को है। पेड़ जो  पत्ते  विहीन  हो गए थे, उन पर पुनः पत्ते आने शुरू हो गए हैं। पंछी जो  विदा ले चुके थे ,वे पुनः अपने घोसले की तलाश में मंडराने लगे हैं  ।इन पंछियों को पेड़ों पर मंडराते देखकर कहीं न कहीं मन को  तसल्ली मिलती है और जीवन जीने के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी मिलता है। सूर्य की किरणों में थोड़ी गर्मी आते ही मन में अजीब- सी खुशी छाने लगती है। गेंदा, गुलाब और  गुलदाउदी के साथ-साथ मन भी प्रफुल्लित हो जाता है। गेहूं के हरे- भरे खेत देखकर किसान भी आनंदित हैं । ऐसे समय में, किसान अपनी मांगों को लेकर अब भी डटे हुए हैं। सारे देश की नजर उन पर टिकी हुई है ।सरकार को इस समस्या का हल शीघ्र  निकालना चाहिए।

  • भावना

 

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