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संपादकीय

संपादकीय –

किताबी ज्ञान के साथ बच्चों को व्यवहारिक शिक्षा भी दें

बसंत पंचमी के बाद ठंड की अघोषित छुट्टी तय मानी जाती है। लोग माघ में ही  फागुन की उमंग से लवरेज हो जाते हैं। मां सरस्वती की आराधना के बाद चेहरे पर गुलाल लगाने की परंपरा आज भी कायम है। सरस्वती माता को विदा करते हुए बच्चे अबीर से सराबोर हो जाते हैं। बच्चों के उल्लास को देखकर बड़े भी खुद को रोक नहीं पाते एवं कुछ देर के लिए अपने बचपन में चले जाते हैं। उन्हें भी याद आता है पूजा के अवसर पर आयोजित  सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा  रात- रात भर जाग कर इनके लिए की गयी तैयारी । प्रसाद के रूप में बुनिया, केसौर और बेर का इंतज़ार भला कौन नहीं करता था!  आज सरस्वती पूजा के अवसर पर  अंग्रेजी स्कूल बंद कर दिए जाते हैं, जिसे देखकर बेहद अफसोस होता है। पढ़ाई के अलावा इन सभी आयोजनों का भी अपना महत्व होता है। पूजा के लिए चंदा जुटाने से लेकर मूर्ति का साटा( एडवांस), प्रसाद की खरीदारी तथा पंडाल की साज-सज्जा इत्यादि सब कुछ विद्यार्थी के जिम्मे। विद्यालय में इस तरह के आयोजन का मकसद  किताबी ज्ञान के साथ-साथ  बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा देना भी होता है। कुछ अभिभावकों को इस तरह का आयोजन पढ़ाई में बाधा लगता है। वे चंदा को गलत परिपाटी के रूप में देखते हैं  । पर, मेरा मानना है कि चंदा के बहाने ही सही हम एक दूसरे से मिलते हैं। अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं। छोटी- सी उम्र में अपनी बात पूरी तरह से रख कर एक आयोजन को सफल करना कहीं- न-कहीं बड़े-बड़े आयोजन का पूर्वाभ्यास ही तो होता है। हमेशा पठन-पाठन को ही सफलता का एकमात्र मार्ग समझने वाले लोग अपने बच्चे को अंततः तन्हाई में धकेल देते हैं ।उनके बच्चों को अच्छी नौकरी तो मिल जाती है पर, जीवन जीने के लिए अच्छे दोस्त नहीं मिल पाते। पैसा तो बहुत कमा लेते हैं पर, अपनापन नहीं कमा पाते। हमें अपने बच्चों को पूर्ण मनुष्य बनाना है न कि पैसा कमाने वाली एक मशीन।

पिछले कई महीनों से हम कोरोना की त्रासदी में जीने को मजबूर थे। सरकार ने इस बीमारी से बचाव हेतु टीकाकरण शुरू कर दिए हैं। टीका का  पहला डोज स्वास्थ्य कर्मी को दिया गया, जो उचित ही था।दूसरे चरण में पूलिस, नगर निगम तथा अन्य लोगों को गाइड लाइन के अनुसार देना शुरू हो गया है।  उम्मीद है, हम शीघ्र ही इस बीमीरी को मात देने में सफल हो जाएँगे ।चिकित्सा विज्ञान इसके लिए बधाई का पात्र है।

शीत अब विदा लेने को है। पेड़ जो  पत्ते  विहीन  हो गए थे, उन पर पुनः पत्ते आने शुरू हो गए हैं। पंछी जो  विदा ले चुके थे ,वे पुनः अपने घोसले की तलाश में मंडराने लगे हैं  ।इन पंछियों को पेड़ों पर मंडराते देखकर कहीं न कहीं मन को  तसल्ली मिलती है और जीवन जीने के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी मिलता है। सूर्य की किरणों में थोड़ी गर्मी आते ही मन में अजीब- सी खुशी छाने लगती है। गेंदा, गुलाब और  गुलदाउदी के साथ-साथ मन भी प्रफुल्लित हो जाता है। गेहूं के हरे- भरे खेत देखकर किसान भी आनंदित हैं । ऐसे समय में, किसान अपनी मांगों को लेकर अब भी डटे हुए हैं। सारे देश की नजर उन पर टिकी हुई है ।सरकार को इस समस्या का हल शीघ्र  निकालना चाहिए।

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