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संपादकीय

संपादकीय –

अल्बन-इज के बहाने …

एंथनी अल्बनीज ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री बन गए हैं। उनकी माता मैरीने एलेरी ऑस्ट्रेलिया की रहने वाली हैं। आर्थिक तंगी की वज़ह से उनकी माता को सफाई कर्मचारी के रूप में भी काम करना पड़ा था। हमारे माननीय प्रधानमंत्री की कहानी भी कम प्रेरणादायक नहीं है। आजकल जिसे देखो वह सीमित साधन की वज़ह से बच्चों को नहीं पढ़ा पाने की बात करते हैं। पर ,मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि पैसे मेरिट की राह में रोड़ा नहीं बनते। उचित जानकारी का अभाव एक कारण अवश्य हो सकता है । अपवाद को छोड़ दें तो ,जिज्ञासु विद्यार्थी को पढ़ाने के लिए प्रत्येक शिक्षक तैयार होते हैं। ऐसे कम ही शिक्षक होते होंगे जो विद्यार्थी के सवाल पूछने पर लताड़ देते हों।

कोरोना काल  में कुछ चीजें बहुत अच्छी हुई हैं  उनमें ऑनलाइन पाठशाला भी महत्वपूर्ण है। हम रचनाकारों के लिए ऑनलाइन कार्यक्रम जिस तरह कम समय और कम खर्च के बेहतरीन विकल्प के रूप में सामने आया है ।उसी तरह बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेज यूट्यूब पर फ्री या बहुत कम शुल्क पर उपलब्ध होती हैं।यह बच्चों पर निर्भर है कि वह इसका इस्तेमाल अपने भविष्य को बनाने में कर रहे हैं या बिगाड़ने में ।मां- बाप भी अपने बच्चों के हाथ में मोबाइल थमा निश्चिंत हो जाते हैं।जबकि यह बिल्कुल नहीं होना चाहिए। हमें पूरी मुस्तैदी से बच्चों के क्रियाकलाप पर ध्यान रखना चाहिए ।यह मोबाइल न केवल  पढ़ाई बल्कि  खेलकूद ,नृत्य, चित्रकला  तथा पर्सनाल्टी डेवलपमेंट में भी उतना ही सहायक है।

आजकल मेडिकल, इंजीनियरिंग इत्यादि प्रतियोगिता परीक्षाओं  की तैयारी के लिए कोटा और दिल्ली जैसे नगरों /महानगरों में जाना फैशन हो गया है ।दसवीं पास करते ही अभिभावक भी जहाँ अपने बच्चों को महंगे संस्थानों में पढ़ने के लिए भेजने हेतु उतारू होते हैं ,वहीं विद्यार्थी भी इन कोचिंग संस्थानों में दाखिले के लिए परेशान देखे जाते हैं।ऐसे में  ,वैसे विद्यार्थी जिनके अभिभावक बड़े शहरों में अपने बच्चों को भेजने तथा महंगे कोचिंग फीस और रहने  के खर्च को उठाने में अक्षम होते हैं ,वे अवसाद में चले जाते हैं। वहीं  बच्चों को लगता है कि काश वह भी अपने मित्रों के साथ वैसे  बड़े संस्थानों में पढ़ पाता! अभिभावक अपने बच्चों की उदासी को देखकर हताश हो जाते हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि कोटा और दिल्ली जैसी जगहों पर जाकर भी सफलता की पूरी गारंटी नहीं होती ।असफलता की स्थिति में बच्चे अवसाद के शिकार हो जाते हैं। वे ड्रग्स लेने लगते हैं । कई बार बच्चों पर मां-बाप के सपनों को न पूरा करने का दबाव, उसे खतरनाक कदम उठाने पर भी मजबूर कर देता है।ऐसे में ,अभिभावक को अपने बच्चों पर अत्यधिक दबाव नहीं देना चाहिए ।दसवीं पास किशोर /किशोरी युवावस्था की ओर कदम बढ़ाते होते हैं। ऐसे में, उनके शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते रहते हैं। उन्हें बहुत मानसिक संरक्षण की जरूरत होती है। अतः बच्चों पर जबर्दस्ती सपने थोपना बिल्कुल उचित नहीं। एक रास्ता खत्म होता है तो, दूसरा रास्ता वहीं से शुरु हो जाता है।  असफलता में ही सफलता का राज छुपा होता है । प्रतियोगिता परीक्षा हर वर्ष होती हैं। अतः घबराकर गलत कदम उठाना परिवार, समाज तथा देश के हित में भी सही नहीं है ।ये युवा हमारे देश की सबसे बड़ी पूंजी हैं। याद रखिए ‘ऑनेस्ट लेबर नेवर गोज इन वेन’। बस मेहनत करते जाइए! यकीन मानिए, आपकी मेहनत आपके जीवन के किसी- न- किसी क्षेत्र में सफलता की गारंटी लेकर जरूर आएगी।

  • भावना

 

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