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संपादकीय

संपादकीय –

आजादी को रग-रग में महसूस करें, राष्ट्र प्रेम सर्वोपरि
राष्ट्र किसी भी चेतना संपन्न मनुष्य के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। जिस भूमि के अन्न-जल से हमारा तन पोषित होता है, जिसकी हवा में साँस लेकर हम अपना वजूद पाते हैं, उसके प्रति प्रेम स्वाभाविक है। कहा भी गया है – ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी’।
इस वर्ष 15 अगस्त को हम आजादी का 75 वां वर्ष मना रहे हैं । भारत सरकार ने इसे आजादी का अमृत महोत्सव का नाम दिया है। प्रधानमंत्री के अनुसार ”स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास की तरह ही आजादी के बाद का 75 साल का सफर आम भारतीयों की मेहनत, नवोन्मेष, उद्यम का प्रतिबिंब है। देश हो या विदेश, हम भारतीयों ने अपनी मेहनत से खुद को साबित किया है ।हमें अपने संविधान पर गर्व है। हमें अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं पर गर्व है। लोकतंत्र की जननी भारत आज भी लोकतंत्र को मजबूत कर आगे बढ़ रहा है। ज्ञान और विज्ञान से समृद्ध भारत मंगल से लेकर चंद्रमा पर तक अपनी छाप छोड़ रहा है।” इस बार माननीय प्रधानमंत्री ने आजादी के अमृत महोत्सव के तहत ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की शुरुआत की है।
उत्सव खुद को उमंगों से लबरेज करने का एक माध्यम है। दुख-सुख जीवन का एक अंग है। मैं कभी भी किसी पार्टी विशेष की विचारधारा से प्रभावित नहीं रही हूँ। मेरी नजर में मानवता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं और राष्ट्र प्रेम से बड़ा कोई ईमान नहीं। सच के पक्ष में मजबूती से खड़े रहना ही इंसानियत का तकाजा है। हर बात पर किसी को कोसना मुझे थोड़ा असहज कर जाता है। एक गिलास पानी जो आधा भरा हुआ है, किसी को आधा खाली भी दिखता है। फर्क सिर्फ दृष्टिकोण का है।
एक गरीब जब अपनी बेटी की शादी करता है तो उसके घर में भी उत्सव का माहौल होता है। दो जून की रोटी मुश्किल से जुटाने वाला कहीं से कर्ज लेकर भी अतिथियों का आदर-सत्कार अवश्य करता है। यह हमारे देश की सभ्यता संस्कृति का अंग है। लोग अपनी शादी की सालगिरह, सिलवर जुबली और गोल्डन जुबली तक का प्रदर्शन फेसबुक पर करते नहीं थकते। पर, देश अगर अपना 75 वाँ स्वतंत्रता दिवस अमृत महोत्सव के रूप में मनाए तो बहुतों को दिखावा लगता हैै।
मैथिली शरण गुप्त ने कहा है-
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
या
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं नर पशु निरा और मृतक के सामान है

एक साहित्यकार का पहला कर्तव्य देश और समाज के हाशिए पर खड़े व्यक्ति की आवाज बनना होता है। अगर हम अपने देश के प्रति वफादारी और नैतिक दायित्व का वहन करने में अक्षम हैं तो फिर यह साहित्यकार नाम का माला गले में क्यों डाले फिरते हैं । मैं आर्थिक रूप से असमर्थ साहित्यकारों की बात नहीं कर रही, पर जो समर्थ साहित्यकार हैं, बिना किसी स्वार्थ के कितने जरूरतमंद लोगों का भरण- पोषण व शिक्षा दीक्षा का भार अपने कंधों पर लेते हैं। क्या यह सारी क्रांति कागज पर शब्दों की जादूगरी से ही की जाती है, यह सोचने की जरूरत है।
आजादी के अमृत महोत्सव पर हमारा यह अंक देश प्रेम संबंधी रचनाओं पर केंद्रित है। आज आजादी के अमृत महोत्सव के बहाने हम देश प्रेम को अपने रग-रग में महसूस करें और इस बात पर गर्व करें कि हम भारत देश के नागरिक हैं। हम अपनी देश की सेना को धन्यवाद करें, जिनकी वज़ह से हम अपने-अपने घरों में सुख चैन की नींद ले रहे हैं।
आप सभी को आजादी के 75 वें वर्षगांठ की हार्दिक बधाई।
– भावना

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