रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद :: शबनम सिन्हा
रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद : शबनम सिन्हा चिलचिलाती धूप में टपकते पसीने के बाद भी आगे बढ़ते कदम इस उम्मीद के साथ कि पेट भरने के लिये हो…
रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद : शबनम सिन्हा चिलचिलाती धूप में टपकते पसीने के बाद भी आगे बढ़ते कदम इस उम्मीद के साथ कि पेट भरने के लिये हो…
अंशु केशव की दो ग़ज़लें 1. अज़ीज़ था मेरा जो नींद से मुझे जगा गया फिर असलियत में ख़्वाब क्या है ये मुझे बता गया वो मूरतें बना-बना के तोड़ता…
विवेक मिश्र की तीन ग़ज़लें 1 जो था फ़क़त तुम्हारा, तुम्हे देर से मिला यानी,,,,पता हमारा, तुम्हे देर से मिला जो ख़्वाब में बसाया था, तामीर के लिए…
दोहे :: महानगरीय समस्याएँ जयप्रकाश मिश्र नंगेपन की दौड़ में, महानगर है आज। बिना शर्म की नग्नता, फिर भी करती नाज।।1।। भीड़-भाड़ की जिन्दगी, मिलता ट्रैफिक जाम। घुटन…
दोहे – के. पी. अनमोल जब-तब इसके वास्ते, युद्ध हुए अनमोल। नक़्शा रोटी का मगर, रहा हमेशा गोल।। ***** तन की सुंदरता जगत, करता है स्वीकार। मन की सुंदरता लिये,…
शरीर का अंत मृत्यु नहीं होती बड़े अरमानों को लेकर घरों को छोड़ आयें सीखने मौत को यमराज से छीन लेने की कलाएँ धरती का भगवान सुनती रही हूँ…
पेड़ से हुई वार्तालाप! आज सुबह गंडक नदी के किनारे नदी के तीरे-तीरे यों मैं प्रात भ्रमण पर निकला था इसी बीच मेरी मुलाकात एक पेड़ से हो गई चलते…
ग़ज़ल सभी की ज़िंदगानी का बड़ा छोटा फ़साना है अचानक से चले आये अचानक लौट जाना है कहानी लिख तो दूँ लेकिन वही किरदार लाज़िम है जिसे अपनी कहानी में…
ग़ज़ल सभी की ज़िंदगानी का बड़ा छोटा फ़साना है अचानक से चले आये अचानक लौट जाना है कहानी लिख तो दूँ लेकिन वही किरदार लाज़िम है जिसे अपनी कहानी में…
शुभा मिश्रा की दो कविताएं निर्वासन कवियों लेखकों के साये में पली- बढ़ी मैं कल इनसे अलग होकर जीऊँ सोचकर ही कॉंप जाती हूँ मैं अज्ञेय और राकेश को…