रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद :: शबनम सिन्हा

रेत की तरह फिसल जाये उम्मीद : शबनम सिन्हा चिलचिलाती धूप में टपकते पसीने के बाद भी आगे बढ़ते कदम इस उम्मीद के साथ कि पेट भरने के लिये हो…

ख़ास कलम – जयप्रकाश मिश्र

दोहे :: महानगरीय समस्याएँ जयप्रकाश मिश्र   नंगेपन की दौड़ में, महानगर है आज। बिना शर्म की नग्नता,  फिर भी करती नाज।।1।।   भीड़-भाड़ की जिन्दगी, मिलता  ट्रैफिक जाम। घुटन…