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आशा पाण्डेय जी की नज़र से समसामयिक जीवन का कोई भी सिरा छूट नहीं पाता : डॉ भावना

March 10, 2023March 11, 2023

गहन संवेदना का प्रमाण ‘देवता पाषाण के’ :: डॉ.प्रेम प्रकाश त्रिपाठी

January 15, 2023March 11, 2023

हिंदी ग़ज़लों की महत्वपूर्ण कृति ‘रास्तों से रास्ते निकले’ : डॉ भावना

January 14, 2023January 16, 2023

‘मेरा चेहरा वापस दो’ ग़ज़ल का नया और मौलिक चेहरा : डॉ. भावना

December 22, 2022January 16, 2023

साहित्यिक सुरभि से भरी विद्यालयी आत्मकथाएं :: डॉ.शांति सुमन

November 11, 2022January 16, 2023

साहित्य में बदलाव का साक्षी ‘रास्ता दिल का’ :: डॉ.भावना

November 11, 2022November 11, 2022

अदम्य :बिहार के युवा ग़ज़लकार :: देवयानी झाडे

November 11, 2022November 11, 2022

आम आदमी की कविताएं ‘आकाश के पन्ने पर’ :: आशीष मोहन

September 29, 2022

भाव और कला पक्ष का उत्कृष्ट सृजन ‘मेरी मां में बसी है…’ :: अविनाश भारती

September 29, 2022September 29, 2022
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Category: खास कलम –

खास कलम -

ख़ास कलम :: शुभा मिश्रा

शुभा मिश्रा की दो कविताएं    निर्वासन कवियों लेखकों के साये में पली- बढ़ी मैं कल इनसे अलग होकर जीऊँ सोचकर ही कॉंप जाती हूँ...

admin
March 10, 2023March 11, 2023
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खास कलम -

ख़ास कलम :: डॉ अफरोज आलम

ग़ज़ल चंद टूटे हुए बिखरे हुए ख़्वाबों के सिवा कुछ नहीं अब मेरे दामन में शरारों के सिवा दिल सुलगता है मेरा, शोला बयानी से...

admin
March 10, 2023March 11, 2023
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खास कलम -

ख़ास कलम :: सुमन आशीष

सुमन आशीष की तीन ग़ज़लें 1 तितलियाँ, तोते,गिलहरी यार थे बचपने के ये मेरे संसार थे आम बरगद नीम से थी दोस्ती चाँद-सूरज ख़ास रिश्तेदार...

admin
January 15, 2023January 16, 2023
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खास कलम -

ख़ास कलम :: दिनेश बाबा

अंगिका दोहा दिनेश बाबा बाबा खल के दोसती, दुक्खे दै के जाय। बदमाशी आँखें करै,देह कुटम्मस खाय।। प्रेम आरु गाढ़ो हुवै,बाढ़ै जब बिलगाव। भाँसै तेजी...

admin
January 14, 2023January 16, 2023
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खास कलम -

ख़ास कलम :: डॉ शिप्रा मिश्रा

आज भी    - डॉ शिप्रा मिश्रा आज भी.. देखा मैंने उसे पानी में खालिश नमक डाल कर उसने मिटाई अपनी भूख आज भी-- खाता...

admin
December 22, 2022January 16, 2023
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खास कलम -

ख़ास कलम :: निहाल सिंह

आजाद परिन्दे निहाल सिंह उड़ते रहते हैं आजाद परिन्दे बेखोफ नीले गगन में जहाँ ना कोई सरहद है, ना कोई बंधन है धरा के इंसान...

admin
December 22, 2022January 16, 2023
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खास कलम -

ख़ास कलम :: दीप शिखा

 दीपशिखा की ग़ज़लें 1 कष्ट  ये  दाल  रोटी  का  जाता  नहीं , पेट खाली हो गर कुछ भी भाता नहीं। मीर भी इस ज़माने में...

admin
November 10, 2022November 10, 2022
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खास कलम -

ख़ास कलम :: डाॅ. अफ़रोज़ आलम

ग़ज़ल क्या अजब लुत्फ़ मुझे सब्र के फल में आए जैसे नुज़हत कोई रुक-रुक के महल में आए हाय वो इश्क़ की नैरंग-ए-तमन्ना मत पूछ...

admin
September 30, 2022September 30, 2022
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खास कलम -

ख़ास कलम :: सविता राज

हर घर तिरंगा फहराया                       - सविता राज तिरंगा प्यारा हर घर लहराया, आजादी का...

admin
August 7, 2022August 7, 2022
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खास कलम -

ख़ास कलम :: हेमा सिंह

देश भक्ति गीत - हेमा सिंह हम रहे न रहे देश मेरा रहे ! यूँ ही आबाद मेरा तिरंगा रहे! जान है, शान है देश...

admin
August 7, 2022August 7, 2022
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हमारे बारे में

आंच व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है. इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं. लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक महीने की एक तारीख को प्रकाशित की जाती है. कृपया रचनाएं इमेल पर भेजें. रचनाओं के मौलिक व किसी अंतरजाल पर प्रकाशित नहीं होने का प्रमाण भी संलग्न करें.
इमेल – bhavna.201120@gmail.com ,vinay.prabhat@gmail.com

संपादक –            भावना
संपादकीय टीम – विनय कुमार, संतोष सारंग
कला व परिवर्धन – अरुप सरकार

संपादकीय

संपादकीय –

पुस्तक मेला दे गया वर्ष भर लेखन की खुराक

विश्व पुस्तक मेला 2023 खत्म हो चुका है। पुस्तक मेले में प्रकाशकों, लेखकों और पाठकों के  समागम का नजारा ही कुछ और होता है। इस बार विश्व पुस्तक मेला कोरोना वायरस की वजह से लंबे अंतराल पर आयोजित हुआ। शायद यही वज़ह रही हो कि पाठक जहां अपनी पसंद की पुस्तकों की खरीद के लिए टूट पड़े, वहीं लेखक आपस में मिलने-जुलने के लिए उत्साहित दिखे। सच कहूँ तो पुस्तक मेला वर्ष भर के लेखन की खुराक दे जाता है। अपने पसंदीदा लेखकों से मिलने की खुमारी पाठकों के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। पुस्तक मेला खत्म होते ही लोग होली के रंग में रंगने को तैयार हो गये। गुझिया, नमकीन, पुआ खीर के बीच रंग और गुलाल से सराबोर चेहरा भला किसे नहीं भायेगा?

होली प्रेम और भाईचारे का पर्व है ,जहां सभी अपनी कटुता को मिटा गले मिलते हैं। संयोग यह भी था कि इस बार होली 8 मार्च यानी महिला दिवस को मनाई गई। होली की कल्पना स्त्री के बिना बहुत कठिन है। हमारे यहां राम-सीता और राधा-कृष्ण की होली बहुत ही मशहूर रही है। किसी भी त्योहार की रौनक स्त्रियों से ही है। स्त्रियां ही हैं जो त्यौहारों पर लजीज व्यंजन के साथ प्रेम का रस घोलकर किसी भी त्योहार में रौनक ला देती हैं। वह अपनी पाककला के साथ-साथ प्रेम के रंग में भी हमें भिगो देती हैं।

तो, आइए महिलाओं का सम्मान करें और उन पर चुटकुले बनाने की गंदी मानसिकता का  परित्याग करें।

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