फागुनी दोहे
– जयप्रकाश मिश्र
होली दस्तक दे रही, प्रेम, नेह, अनुराग।
क्यों यौवन में भोगती, गोरी तुम बैराग।।
जोगीरा सर रर र
धूप अटारी पर खड़ी, मचने लगी धमाल।
फागुन आकर दे दिये, इत्र,फूल, रूमाल।।
जोगीरा सर ररर
फागुन अब फबने लगा, चुगली करते नैन।
शोख अदा, पलकें झूकीं, हरतीं मन के चैन।।
जोगीरा सर ररर
फागुन मद भरता रहा, उड़ने लगा गुलाल।
सनक गया सनकी पवन, किया हाल बेहाल।।
जोगीरा सर ररर
फागुन में कैसे निभे, यौवन का अनुबंध।
आँखों से बातें हुईं, टूट गये सब बंध।।
जोगीरा सर रर
होली दस्तक दे रही, चले मदन के तीर।
पिया- विरह में जल रही, धरे न मन में धीर।।
जोगीरा सर ररर
फागुन ने झट लिख दिया, वासन्ती आलेख।
रागी मन आतुर हुआ, तरुणाई को देख।।
जोगीरा सर ररर
पिया बसे परदेश में, तन सिहराये फाग।
रो-रोकर बीते दिवस, रात बीतती जाग।।
जोगीरा सर ररर
फागुन आया झूमकर, निभे न कोई फर्ज।
ताक-झाँक ऐसी बढ़ी,बढ़ा प्रेम का कर्ज।।
जोगीरा सर रर
फागुन आया झूमकर, नैन तुम्हारी ओर।
ऐसी द्विविधा में पड़ा, मन मेरा चितचोर।।
जोगीरा सर ररर
फागुन बरजोरी करें, और करे मनुहार।
छेड़-छाड़ करते रहे, होली में कुछ यार।।
जोगीरा सर ररर
फागुन आया झूमकर, बरसे रंग हजार।
सात सुरों में बज उठे, मन वीणा के तार।।
जोगीरा सर ररर
रंगों की बौछार में तन-मन भीगा आज।
कण-कण उच्छृंखल हुआ, शरण माँगती लाज।।
जोगीरा सर ररर
रचे महावर पाँव में, कनखी मारे आँख।
रंगों की बौछार में, उगे हृदय में पाँख।।
जोगीरा सर ररर
ऐसी भीगी देह भी, रह- रह आती लाज।
आँख हृदय से माँगती, सुन्दर सपना आज।।
जोगीरा सर ररर
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